'2017 में हमारी वजह से बीजेपी की नैया डूबी तो 22 में वह खुद पार कर दिखा दे'

पंजाब की सत्ता में वापसी करना शिरोमणि अकाली दल के लिए कितना अहम है, वह इस बात से समझा जा सकता है कि पार्टी इसके लिए कोई भी दांव खेलने को तैयार है। पहले उसने बीजेपी से करीब ढाई दशक पुराना अलायंस खत्म किया, फिर वहां नया सियासी समीकरण बनाने को बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया। शिरोमणि अकाली दल को पता है कि अगर वह 'कमबैक' नहीं कर पाया तो उसकी सियासी राह बहुत कठिन हो जाएगी। पंजाब में अगले साल के शुरुआती महीनों में चुनाव हैं। मौजूदा परिदृश्य से जुड़े सवालों पर एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने शिरोमणि अकाली दल की कोर कमिटी के मेंबर और सेक्रेटरी जनरल सरदार बलविंदर सिंह भूंदड़ से बात की। बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आपकी पार्टी को अंदाजा हो गया है कि 2022 का चुनाव अकेले नहीं जीत पाएंगे?
पंजाब के किसी में इलाके में आप चले जाएं, जनधारणा बन चुकी है कि कांग्रेस सरकार जा रही है और अकाली दल आ रहा है। हमारी वापसी की संभावना से कांग्रेस घबराई हुई है।
फिर बीएसपी से गठबंधन की जरूरत क्यों पड़ी?
राजनीति में जब आप चुनावी मैदान में जा रहे होते हैं तो बहुत सारे समीकरणों को देखना पड़ता है। अपने भी और अपने प्रतिद्वंद्वियों के भी। पांच चुनावों से हम बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे, 23 सीटें हमने बीजेपी के हवाले कर रखी थीं। इन सीटों पर हमारी पूरा तवज्जो नहीं रहती थी। बीएसपी सभी सीटों पर चुनाव लड़ती आ रही है। उसका संगठनात्मक ढांचा सभी सीटों पर है। सबसे बड़ी बात यह है कि वह हमारी नैचरल अलाइ है। गठबंधन कौन नहीं करता है? यह तो राजनीति का हिस्सा है।
बीएसपी को 1997 विधानसभा चुनाव में एक सीट मिली। चार चुनाव से एक भी सीट नहीं मिल रही है। वोट प्रतिशत भी डेढ़ रह गया, वह आपके लिए कैसे मददगार होगी?
उसका जो डेढ़ प्रतिशत वोट है, वह पूरे पंजाब का है। यह सच है कि बीएसपी पूरे पंजाब में नहीं है, लेकिन कुछ खास पॉकेट्स में उनका ठीक-ठाक वोट है। उन्हें उनका पूरा वोट इसलिए नहीं मिल पा रहा था कि अभी तक उनके वोटर्स को यह भरोसा ही नहीं था कि बीएसपी की सरकार भी बन सकती है। हमारे साथ गठबंधन होने से पूरे पंजाब के दलितों के बीच यह मेसेज गया है कि हमारी सरकार बन रही है। इस बार वे हमारे गठबंधन को ही वोट करेंगे। 1996 के लोकसभा चुनाव में हमारा बीएसपी के साथ ही गठबंधन था, हमने 13 में से 11 सीटें जीत ली थीं।
लेकिन 1997 के विधानसभा चुनाव में आपने बीजेपी के साथ क्यों गठबंधन कर लिया?
वह ऐसा दौर था, जब पूरे देश में हम धार्मिक कट्टरवादी पार्टी के रूप में देखे जा रहे थे। यह छवि हमें नुकसान पहुंचा रही थी। बीजेपी को पंजाब में एंट्री चाहिए थी, उसकी छवि राष्ट्रवादी पार्टी की थी। हम लोगों को लगा कि अगर बीजेपी के साथ अलायंस कर लेते हैं तो धार्मिक कट्टरता की जो मुहर लगी है, वह साफ हो जाएगी। हमारे ही वोट के जरिए बीजेपी को पंजाब में जमीन मिली, फिर वह एक ऐसा कॉम्बिनेशन बन गया, जो जीत की गारंटी था। हम पांच चुनाव में से तीन चुनाव जीते।
2022 चुनाव से पहले आपने बीजेपी से भी रिश्ता तोड़ दिया?
बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार तीन-तीन किसान विरोधी कानून लेकर आ गई, हम उसे कैसे स्वीकार कर लेते? खेत किसानों का, लेकिन उस पर कब्जा पूंजीपतियों का हो जाए, यह तो सरासर ज्यादती है। अगर हम इस कानून को स्वीकारते, तो यह हमारे लिए राजनीतिक आत्महत्या जैसा कदम होता।
वैसे 2017 में आपके गठबंधन को विधानसभा चुनाव में क्यों हार का सामना करना पड़ा था?
कांग्रेस के झूठे प्रोपेगेंडा की वजह से। कांग्रेस ने श्रीगुरु ग्रंथ साहिब के अपमान की झूठी कहानी गढ़ी। उसके बाद उनकी ही सरकार में उनकी ही एजेंसी की जांच में पूरी कहानी झूठी पाई गई। दूसरा प्रोपेगेंडा करप्शन का बनाया। वह भी झूठा था। पांच साल उनकी सरकार थी, अगर हमारे किसी नेता ने करप्शन किया था और उनके पास सबूत था तो जेल क्यों नहीं भेज दिया? कांग्रेस के अंदर इसी वजह से सिर फुटव्वल चल रही है क्योंकि अब जब वह जनता के बीच जाएंगे तो क्या कहेंगे कि सारी कहानियां झूठी थीं?
बीजेपी नेताओं का कहना है कि 2017 के चुनाव में आप लोगों की वजह से उनकी नैया डूब गई?
मान लेता हूं कि 2017 के चुनाव में हमारी वजह से उनकी नैया डूब गई, तो 2022 के चुनाव में अपनी नैया पार कराकर दिखा दें। सच बात यह है कि बीजेपी के नेता पंजाब के गांवों में जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। जमानत बचाने के लाले पड़ जाएंगे।
आप लोग अपनी चुनावी लड़ाई किससे देख रहे हैं?
कांग्रेस से ही होगी, लेकिन वह बहुत पीछे होगी, उसके खिलाफ जबरदस्त नाराजगी है। पांच साल कुछ किया नहीं। जनता को जवाब चाहिए। रही बात बीजेपी की, वह तो कहीं मुकाबले में नहीं है, उसकी चर्चा ही न कीजिए। आम आदमी पार्टी भी अतीत का हिस्सा हो चुकी है।
नरेंद्र मोदी के करिश्मे का चुनाव पर कितना पड़ेगा?
उतना ही जितना बंगाल, तमिलनाडु और केरल में पड़ा। पंजाब का वोटर बहुत जागरूक है। उसे मालूम है कि कौन सी पार्टी और कौन सा नेता उसका हितैषी है? पीआर कंपनी का प्रचार उसे प्रभावित नहीं कर सकता।
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