भुमका-भगत ने भगाया आदिवासियों का डर, 30 गांव के लोग वैक्सीन के लिए तैयार, जानें कैसे हुआ ये कमाल

बैतूल: एमपी के ग्रामीण इलाकों में वैक्सीनेशन (Betul Vaccination Drive) को लेकर कई तरह के भ्रम हैं। ग्रामीण डर से टीका (Rumours for Vaccine) नहीं लगवाना चाहते थे। बैतूल (Betul News Update) जिले में प्रशासन ने आदिवासी पुजारियों (Tribal Priests) का सहारा लिया है। गांव-गांव जाकर वैक्सीन को लेकर फैले अंधविश्वास को पुजारियों (Myth Busters Tribal priest) ने दूर किया है। साथ ही आदिवासियों को वैक्सीन लेने के लिए प्रोत्साहित किया है। उसके नतीजे भी आने लगे हैं। आदिवासी पुजारियों ने ग्रामीण इलाकों में वैक्सीन को लेकर जो भ्रम था, उसे तोड़ दिया है। आदिवासी पुजारियों के इलाके में भूमका या भगत कहते हैं। पहली बार इनकी मदद प्रशासन ने भी ली है।
बैतूल कलेक्टर अमनवीर सिंह ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि 30 गांवों के आदिवासी वैक्सीन लेने के लिए तैयार नहीं थे, अब वे तैयार और इच्छुक हैं। कलेक्टर ने कहा कि बैतूल के आदिवासी क्षेत्रों में कम से कम 25 पंचायतें हैं, जहां किसी ने टीका नहीं लगाया है। वहीं, 47 गांवों में 5 फीसदी से कम टीकाकरण हुआ है। इसकी मुख्य वजह कोविड वैक्सीन को लेकर फैले अफवाह हैं। उन्होंने कहा कि इससे निपटने के लिए प्रशासन की टीम स्थानीय धार्मिक प्रमुखों के पास पहुंची। वे लोग ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने के लिए तैयार हो गए। अब अधिकारी भी इन पुजारियों के वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। ये पुजारी स्थानीय भाषा में लोगों से वैक्सीन लगवाने के लिए अपील कर रहे हैं।
ऐसा ही एक वीडियो जूनापानी गांव के भुमका (आदिवासियों के पुजारी) सागन मार्सकोले का गोंडी बोली में प्रशासन ने पोस्ट किया है। इसमें वह कह रहे हैं कि सरकार आपकी सुरक्षा के लिए यह टीकाकरण अभियान चला रही है। बैतूल के अधिकांश आदिवासी इलाके में लोग गोंडी बोली बोलते हैं। 14 आदिवासी पुजारियों के वीडियो बैतूल के ग्रामीण इलाकों में प्रशासन की तरफ से प्रसारित किए जा रहे हैं, जिसका असर देखने को मिल रहा है। बोरगांव के पर्वत राव धोटे ने कहा कि हमारे गांव में टीकाकरण के बाद होने वाली मौतों की अफवाहें थीं, जो निराधार थीं। उन्होंने कहा कि पिछले दो महीनों में लगभग 30 मौतें हुईं, इनमें चार कोविड के कारण हुईं। वैक्सीनेशन के बाद एक बुजुर्ग की मौत हुई, लेकिन वह प्राकृतिक कारण था। उन्होंने कहा कि हमारे पंचायत में लोगों को इसके बारे में जानकारी है और लोग खुद से टीका लगवा रहे हैं।
वहीं, बैतूल कलेक्टर ने कहा कि भुमका टीकाकरण अभियान में मदद कर रहे हैं। बैतूल कलेक्टर ने कहा कि परंपरागत रूप से आदिवासियों की अपनी समानांतर स्वास्थ्य प्रणाली और मान्यताएं होती हैं। उनके पास अगर वहां से कोई जानकारी आती है तो इसका प्रभाव पड़ता है। हमलोगों ने इसी वजह से स्थानीय पुजारियों की पहचान की, उनके साथ बैठकें कीं, उन्हें वैक्सीन को लेकर आश्वस्त किया और वे अब जागरूकता फैला रहे हैं। उन गांवों में लक्षित वैक्सीनेशन किया जा रहा है, आदिवासियों और गैर आदिवासियों की मिश्रित आबादी है। कलेक्टर ने कहा कि अब जिन लोगों को टीका लग रहा है, वह पड़ोसी आदिवासी गांवों में जागरूकता पैदा कर रहे हैं। कलेक्टर ने कहा कि पिछले 10 दिनों में लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि हमने 47 गावों का सर्वेक्षण किया, जहां टीकाकरण प्रतिशत कम था। इनमें से 30 गांवों के लोग अब टीकाकरण के लिए तैयार हैं। अगर हम वहां शिविर लगवाते हैं तो वे टीकाकरण करवाएंगे।
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