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G-7 ने दिखा दिया, अमेरिका के लिए पहले वाली बात नहीं

New Delhi: दुनिया के सात अमीर लोकतांत्रिक देशों (जी-7) के राष्ट्राध्यक्षों की दो साल में पहली बार ब्रिटेन के कॉर्नवॉल में आमने-सामने की मीटिंग रविवार को पूरी हो गई। इसके जरिये संदेश देना चाहते थे कि अमेरिका फिर से वैश्विक अजेंडा तय करने की अपनी केंद्रीय भूमिका में लौट आया है, जिसे उसने डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान गंवा दिया था। कुछ हद तक अमेरिका इसमें सफल रहा। वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन के व्यवहार पर नजर रखने को लेकर जी-7 देशों में आपसी चर्चा पर सहमति बनी। 

चीन के मुकाबले में जी-7 की ओर से दूसरे देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट के लिए वित्तीय मदद का ऐलान किया गया, जिस पर किसी ठोस पहल में वक्त लगेगा। जी-7 ने चीन में मानवाधिकार उल्लंघन की आलोचना की और विकासशील-गरीब देशों को कोरोना महामारी से निपटने के लिए साल भर में 1 अरब वैक्सीन देने पर भी सहमति बनी। संयुक्त बयान में कोरोना महामारी कहां से शुरू हुई, उसकी जांच की बात कही गई। लेकिन चीन के खिलाफ वैसी सख्त भाषा का इस्तेमाल नहीं हुआ, जैसा कि अमेरिका चाहता था। 

चीन दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है। इसलिए जर्मनी, इटली और यहां तक कि फ्रांस भी उसे नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। चीन ने भी कहा कि अब वह दौर नहीं रहा, जब छोटे समूह दुनिया की तकदीर तय किया करते थे। उसका इशारा जी-20 समूह और बहुदेशीय संस्थाओं की ओर था। उधर, जी-7 के अंदर भी संबंध सहज नहीं हैं। जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल ब्रिटेन और अमेरिका से नाराज हैं। में जब कोरोना पीक पर था, तब दोनों देशों ने उसे वैक्सीन के निर्यात को रोक दिया था। ब्रेग्जिट की शर्तों को लेकर भी यूरोपीय संघ के देशों का ब्रिटेन के साथ टकराव बना हुआ है। 

ट्रंप के राष्ट्रपति रहने के दौरान यूरोपीय देशों और नाटो सहयोगियों के साथ अमेरिका के रिश्ते बहुत खराब हो गए थे। बाइडन के लौटने से स्थिति बेहतर हुई है, जिसकी झलक जी-7 मीटिंग में दिखी। लेकिन यह भी दिखा कि अमेरिका के लिए अब पहले जैसे हालात नहीं रह गए, जब वह वैश्विक अजेंडा तय करता था और समूह के बाकी देश उसके पीछे चलते थे। इसका मतलब यह नहीं है कि बाइडन इसकी कोशिश छोड़ देंगे। वह चीन और रूस के खिलाफ वैश्विक मोर्चाबंदी में लगे हैं। जी-7 और क्वाड जैसे समूहों का वह इसके लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। क्वाड में भारत अहम भागीदार है। यह भी याद रखना होगा कि चीन ने पिछले साल पूर्वी लद्दाख में सीमा पर तनातनी शुरू की, जो अभी तक खत्म नहीं हुई है। इसलिए नए शीत युद्ध जैसे माहौल में अब जो वैश्विक मोर्चेबंदी हो रही है, उसमें भारत को किसी का मोहरा न बनते हुए अपने हितों का ख्याल रखना होगा।



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