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कोरोना कम, वैक्सीन ज्यादा तो खुल क्यों नहीं रहे स्कूल? यह सवाल मन में है तो जान लें जवाब

शिल्पा अग्रवाल और दीपा मणि कोरोना वायरस की दूसरी लहर के खतरे के बीच तेलंगाना में 1 जुलाई शैक्षणिक संस्थानों को खोलने का निर्णय लिया गया था। हालांकि बाद में तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव ने इस फैसले को टाल दिया। तेलंगाना सरकार के स्कूल खोलने के फैसले की कई लोगों ने आलोचना भी की थी। कोरोना संकट की वजह से स्कूलों को बंद हुए करीब-करीब 1.5 साल होने को है। बीच में कुछ स्कूलों को खोला तो गया, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर फिर से बंद कर दिया गया। स्कूलों को फिर से खोला जाना चाहिए या नहीं, इसको लेकर टीचर से लेकरर पैरंट्स तक, सबकी अपनी जायज चिंताएं हैं। स्कूल खुलने से पहले इन चिंताओं पर खास गौर होना चाहिए
  • अभी तक सभी शिक्षकों का पूर्ण टीकाकरण नहीं हुआ है, कई शिक्षकों ने तो एक भी डोज नहीं ली है।
  • स्कूल जाने वाले बच्चों को अभी वैक्सीन भी नहीं दी जा सकती है।
  • अधिकांश स्कूलों में अच्छे हवादार क्लासरूम नहीं हैं।
  • स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों का पालन और निगरानी करना बेहद मुश्किल है।
  • बच्चे, खुद भले हीवायरस से बीमार न हों, लेकिन वे वायरस के शक्तिशाली वाहक साबित हो सकते हैं क्योंकि वायरस उनके साथ उनके परिवार तक आ सकता है।
आर्थिक पहलू भी महत्वपूर्ण हैं अप्रत्याशित तरीके से स्कूलों का बंद होते रहना शिक्षा के साथ-साथ आय और अन्य आर्थिक लाभों को भी प्रभावित करेगा। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रिया और जर्मनी में जिन लोगों ने द्वितीय विश्व युद्ध के कारण शैक्षिक नुकसान का उठाया। उन्हें युद्ध के 40 साल बाद भी बड़ी कमाई का नुकसान हुआ, जो सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP का लगभग 0.8% था। डिस्टेंस लर्निंग ने इन नुकसानों को कम करने का थोड़ा काम किया है। नीदरलैंड की एक स्टडी से पता चलता है कि केवल 8 हफ्ते के लंबे लॉकडाउन के दौरान डिस्टेंस लर्निंग के कारण सीखने की उतनी हानि हुई जो क्लासरूम में सीखने के 8-10.5 हफ्ते के बराबर थी। इन निष्कर्षों से पता चलता है कि हमें शायद कम से कम स्कूल का एक पूरा साल सीखने के लिहाज से नुकसान होगा। कुल मिलाकर ये नुकसान बड़े पैमाने पर हैं और हमारे स्कूलों के बंद रहने के कारण यह बढ़ते रहेंगे। बच्चे और माता-पिता बड़ी कीमत चुका रहे हैं जब बच्चे स्कूल जाते हैं, तो वे न केवल शिक्षक से सीखते हैं बल्कि साथियों के साथ बातचीत करने से उनके भावनात्मक और सामाजिक कौशल के विकास में मदद मिलती है। एंग्जाइटी और डिप्रेशन समेत स्टूडेंट्स पर सोशल आइसोलेशन के प्रभाव का अध्ययन होना शुरू हो गया है। नौकरियों में पहले ही अनिश्चितता का सामने कर रहे पैरंट्स या वर्किंग मदर्स में रिमोट लर्निंग के चलते तनाव और बढ़ जाता है। गरीब परिवार ज्यादा प्रभावित होते हैं डिस्टेंस लर्निंग की लागत कम आय वाले परिवारों के बच्चों के लिए निस्संदेह अधिक है। यूनिसेफ की रिमोट लर्निंग रीचैबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण-शहरी विभाजन के साथ केवल 24% भारतीय परिवारों के पास घर पर इंटरनेट की पहुंच है। इसलिए, बिना इंटरनेट के घरों में बच्चों के लिए शैक्षिक विषमताओं के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा जनवरी 2021 में की गई एक फील्ड स्टडी के अनुसार, 5 राज्यों के एक हजार से अधिक सरकारी स्कूलों के 16 हजार बच्चों (ग्रेड 2-6) में से 92% बच्चों ने कम से कम 1 भाषाई क्षमता खो दी है। स्टडी बताती है कि 82% बच्चों ने कम से कम 1 गणितीय क्षमता जो उन्होंने महामारी से पहले हासिल की थी। गरीब बच्चों के लिए, स्वास्थ्य एक और मुद्दा है मिड डे मील जैसी स्कूल-आधारित भोजन वितरण योजनाओं को भी महामारी से भारी झटका लगा है। कई राज्यों में 2019 की समान समय अवधि की तुलना में अप्रैल और मई 2020 के महीनों में इसमें उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। कई राज्यों में खाद्य असुरक्षा और स्कूल-आधारित स्वास्थ्य सेवाओं की हानि से व्यापक स्वास्थ्य संबंधी असमानताएं पैदा करने की आशंका पैदा होती है। बच्चों को कोविड का खतरा कम यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने अमेरिका में K-12 स्कूल खोलने के अपने हालिया दिशानिर्देशों में उल्लेख किया है कि स्कूल में उपस्थित कम्युनिटी ट्रांसमिशन के लिए प्राइमरी ड्राइवर नहीं है। इसके समर्थन में दिए गए अध्ययनों से पता चलता है कि बच्चों में वयस्कों की तुलना में वायरस से प्रभावित संभावना काफी कम होती है। इसलिए बच्चे इसकी चपेट में आ भी जाते हैं, तब भी उनमें वायरल लोड कम होता है और बीमार होने की संभावना कम होती है। गंभीर बीमारी, जिसमें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है, बच्चों में दुर्लभ है। हालांकि बच्चों में मौजूद वायरस संपर्क में आने वाले वयस्कों में फैलने की अधिक आशंका रहती है। ऐसा महामारी के शुरुआती दिनों से देखा जा रहा है। अगर अभी नहीं तो कब बड़ा सवाल है कि स्कूल खोलने के लिए क्या करना होगा? इतना तो साफ है कि कोरोना अभी दूर नहीं जा रहा है। यूनिवर्सल लेवल पर फुल वैक्सीनेशन की संभावना 2022 के मध्य से आखिरी तक है। तो क्या हमारे बच्चे अपनी शिक्षा में एक और साल का नुकसान उठाने लायक हैं? ऐसे में बहुत कुछ खो जाएगा और ये नुकसान सबसे गरीब और सबसे कमजोर आबादी को प्रभावित करेगा। (शिल्पा अग्रवाल अर्थशास्त्र की सहायक प्रफेसर हैं और दीपा मणि इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में इन्फर्मेशन सिस्टम्स की प्रफेसर हैं।)


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