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क्या है ओबीसी में क्रीमी लेयर, कैसे तय होता है यह? जानें सुप्रीम कोर्ट की आदेश पर तय की गईं शर्तें

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के नॉन-क्रीमी लेयर में प्राथमिकता तय करने वाले आदेश का नोटिफिकेशन यह कहते हुए रद्द कर दिया कि सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर तय नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि 17 अगस्त 2016 के नोटिफिकेशन के तहत राज्य सरकार ने सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर तय किया था। बेंच ने कहा कि यह नोटिफिकेशन इंदिरा साहनी से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले के खिलाफ है । उसने कहा कि इंदिरा साहनी जजमेंट में आर्थिक, सामाजिक और अन्य आधार पर क्रीमी लेयर तय करने का फॉर्म्युला बताया गया था। मंडल कमिशन की सिफारिश और ओबीसी हिंदुओं में सामाजिक या शैक्षणिक रूप से वर्ग की पहचान करने के लिए वर्ष 1979 में बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (BP Mandal) की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया था। उसने पिछड़े वर्ग के लिए सरकारी शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में 27% आरक्षण देने की सिफारिश की। ध्यान रहे कि अनुसूचित जनजाति (ST) और अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षण का प्रावधान देश में पहले से ही लागू था। इसलिए, मंडल कमिशन ने जिन्हें आरक्षण देने की सिफारिश की थी, उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कहा गया। क्या है ओबीसी में क्रीमी लेयर मंडल कमिशन की सिफारिश 12 सालों तक ठंडे बस्ते में दबी रही। जब वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो वर्ष 1991 में इसी सिफारिश के आधार पर नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में ओबीसी रिजर्वेशन का ऐलान कर दिया। तब सुप्रीम कोर्ट की वकील इंदिरा साहनी ने उसे देश की शीर्ष अदालत में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर, 1991 को दिए अपने फैसले में ओबीसी को 27% आरक्षण के फैसले का समर्थन किया, लेकिन उसने कहा कि ओबीसी की पहचान के लिए जाति को पिछड़ेपन का आधार बनाया जा सकता है। साथ ही, उसने यह भी स्पष्ट किया था कि ओबीसी में क्रीमी लेयर को आरक्षण नहीं दिया जाएगा। क्रीमी लेयर तय करने लिए आमदनी का आधार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगले वर्ष 1992 में देशभर में ओबीसी आरक्षण लागू हो गया। हालांकि, कुछ राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट की बात यह कहते हुए नहीं मानी की उनके यहां ओबीसी में कोई क्रीमी लेयर है ही नहीं। वर्ष 1999 में क्रीमी लेयर का मुद्दा फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने उठा। कोर्ट ने फिर से अपना पुराना आदेश दोहराया। हालांकि, केंद्र की वीपी सिंह सरकार ने 1993 में ही ओबीसी में क्रीमी लेयर तय करने के लिए अधिकतम सालाना आय की रकम भी तय कर दी और नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट की भी व्यवस्था बना दी। क्या है आमदनी का पैमाना इसके मुताबिक, वर्ष 1993 में सालाना 1 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी वाला ओबीसी परिवार क्रीमी लेयर घोषित किया गया। यानी, जिस ओबीसी परिवार को साल में 1 लाख रुपये की कमाई हो रही थी, उसे आरक्षण का फायदा नहीं दिया जा रहा था। फिर 2004 में यह पैमाना बढ़कर 2.5 लाख रुपये, 2008 में 4.5 लाख रुपये, 2013 में 6 लाख रुपये और फिर 2017 में 8 लाख रुपये हो गया। नियम के मुताबिक, हर तीन साल में क्रीमी लेयर तय करने के तयशुदा आमदनी की रकम को रिवाइज किया जाता है। यही वजह है कि अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) और ओबीसी वेलफेयर की लड़ाई लड़ने वाले एक्टिविस्ट जल्दी से जल्दी यह रकम बढ़ाने की बात कर रहे हैं। उधर, सरकार का कहना है कि उसे ओबीसी कोटे की जातियों में उपजातियों के निर्धारण के लिए गठित जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक ने मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में लिखित जवाब दिया था। उन्होंने कहा, 'ओबीसी में क्रीमी लेयर तय करने का इनकम क्राइटेरिया के रिविजन का प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन है।' ओबीसी सर्टिफिकेट पाने की योग्यता की शर्तें ⮞ अगर किसी के माता-पिता केंद्र सरकार की ग्रुप सी या डी श्रेणी की नौकरियां कर रहे हैं ⮞ सरकारी लिस्ट वाली जाति का होने के बावजूद किसी को ओबीसी सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा... ⮞ अगर वो पिछड़ी जाति या अति पिछड़े वर्ग की जाति में आता है ⮞ माता-पिता में दोनों या कोई एक, आईएएस, आईपीएस, आईएफएस जैसे ग्रुप ए सर्विस में हों ⮞ माता-पिता में दोनों या कोई एक, केंद्र सरकार के ग्रुप बी और ग्रुप सी की नौकरी कर रहे हों ⮞ माता-पिता में दोनों या कोई एक, राज्य सरकार के ग्रुप 1 की नौकरी कर रहे हों ⮞ खेती-बाड़ी को छोड़कर अन्य सभी साधनों से खुद की और पूरे परिवार की कुल सालाना आय 8 लाख रुपये से ज्यादा हो फिर राज्यों को मिला ओबीसी लिस्ट तैयार करने का अधिकार यह तय करने का अधिकार राज्यों को दिया गया है कि वह किन-किन जातियों को ओबीसी लिस्ट में शामिल करे। हालांकि, वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने कानून में संशोधन कर यह अधिकार राज्यों से छीनकर अपने हाथ में ले लिया था, लेकिन संसद के पिछले मॉनसून सत्र में 12वें संविधान संशोधन के जरिए केंद्र ने ओबीसी लिस्ट तैयार करने का अधिकार राज्यों को लौटा दिया।


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