किसी-न-किसी बहाने वकील करते रहते हैं हड़ताल, अब कड़ाई के मूड में बार काउंसिल
नई दिल्ली
() कम करने और हड़ताल के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से दूसरों को भड़काने वाले वकीलों के खिलाफ कार्रवाई के नियम बनाने के लिए राज्यों के बार काउंसिलों के मीटिंग बुलाई है। बीसीआई ने इसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी। बीसीआई के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ को बताया कि उन्होंने 4 सितंबर को सभी राज्य विधिज्ञ परिषदों की बैठक बुलाई है।
BCI ने सुप्रीम कोर्ट को बताई यह बात
मिश्रा ने कहा, 'हम 4 सितंबर को सभी राज्य विधिज्ञ परिषदों एवं संघों की बैठक करेंगे तथा इसमे हम वकीलों की हड़ताल कम करने के लिए नियम बनाने और हड़ताल के लिए अन्य लोगों को सोशल मीडिया के जरिए भड़काने वाले वकीलों के खिलाफ कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखेंगे।' पीठ ने मिश्रा का अभ्यावेदन (Representation) दर्ज किया और कहा कि वह बीसीआई के इस कदम की सराहना करती है। शीर्ष अदालत ने मिश्रा के अनुरोध पर मामले की आगे की सुनवाई सितंबर के तीसरे सप्ताह के लिए स्थगित कर दी। सुनवाई की शुरुआत में मिश्रा ने न्यायालय के पिछले साल के आदेश के अनुपालन में कोरोना वायरस वैश्विक महामारी फैलने के कारण देरी होने और पहले सुझाव नहीं देने के लिए माफी मांगी। उच्चतम न्यायालय ने 26 जुलाई को कहा था कि उसने पिछले साल 28 फरवरी को अपना फैसला सुनाया था और बीसीआई एवं स्टेट बार काउंसिलों को वकीलों के काम से अनुपस्थित रहने और हड़ताल करने की समस्या से निपटने के लिए ठोस सुझाव देने का निर्देश दिया था।
वकीलों की चलती रहती है हड़ताल
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 28 फरवरी को उत्तराखंड जिला अदालतों में वकीलों द्वारा 'पाकिस्तान में बम विस्फोट', और 'नेपाल में भूकंप' जैसे कारणों से 35 साल तक हर शनिवार को हड़ताल करने पर नाराजगी जताई थी। उसने सप्ताहिक हड़ताल जारी रखने वाले वकीलों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई से संबंधित कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी। न्यायालय ने इस हड़ताल को अवैध बताते हुए वकीलों द्वारा हड़ताल करने/काम पर नहीं आने की समस्या से निपटने के लिए आगे की कार्रवाई संबंधी सुझावों के लिए बीसीआई और सभी राज्य विधिज्ञ परिषदों से छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा था। वकीलों की हड़ताल का मुद्दा उत्तराखंड हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के दौरान सामने आया था। इस फैसले में उच्च न्यायालय ने देहरादून और हरिद्वार तथा ऊधम सिंह नगर के अधिकतर हिस्सों में प्रत्येक शनिवार को वकीलों की हड़ताल या अदालत के बहिष्कार को अवैध करार दिया था। पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को पूरी तरह न्यायोचित बताते हुये कहा था कि यह स्वत: ही अवमानना कार्यवाही शुरू करने का उचित मामला है।
विधि आयोग की रिपोर्ट का हवाला
हाई कोर्ट ने 25 सितंबर, 2019 को अपने फैसले में विधि आयोग की 266वीं रिपोर्ट का भी हवाला दिया था। इस रिपोर्ट में आयोग ने वकीलों की हड़ताल की वजह से कार्य दिवसों (Working Days) के नुकसान के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद कहा था कि इससे अदालतों का कामकाज प्रभावित होता है और लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ाने में यह योगदान करते हैं। उत्तराखंड के बारे में उच्च न्यायालय द्वारा विधि आयोग को भेजी गयी सूचना के अनुसार 2012-2016 के दौरान देहरादून जिले में वकील 455 दिन हड़ताल पर रहे जबकि हरिद्वार में 515 दिन वकीलों की हड़ताल रही। विधि आयोग की रिपोर्ट का जिक्र करते हुये उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि स्थानीय मुद्दे से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के ऐसे मुद्दों पर वकील अदालतों से अनुपस्थित रहते हैं जिनका अदालत के कामकाज से कोई संबंध ही नहीं होता है।
35 साल से जारी है साप्ताहिक हड़ताल!
उच्च न्यायालय ने कहा था कि उदाहरण के लिए पाकिस्तान के स्कूल में बम विस्फोट, श्रीलंका के संविधान में संशोधन, अंतर्राज्यीय जल विवाद, किसी वकील पर हमला या उसकी हत्या, नेपाल में भूकंप, अधिवक्ताओं के नजदीकी रिश्तेदार के निधन पर शोक व्यक्त करने और यहां तक कि भारी बारिश और कवि सम्मेलनों जैसे मुद्दे भी अदालत की कार्यवाही के बहिष्कार की वजह बनती रही हैं। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इस तथ्य का जिक्र किया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले 35 साल से शनिवार को अदालत की कार्यवाही का बहिष्कार करके विरोध करने का सिलसिला चल रहा है। उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के बाद 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड प्रदेश के सृजन से पहले ये तीनों जिले उत्तर प्रदेश का हिस्सा थे।
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