जहां टूट कर गिरती हैं, वहीं शुरू होता है एक नया जीवन, आदिवासी युवतियों की बनाई ईको फ्रेंडली राखियां दे रहीं कई संदेश

खंडवामध्य प्रदेश के खंडवा जिले की खालवा आदिवासी तहसील के वन ग्रामों में रहने वाली लड़कियां बना रही हैं। बांस,भुट्टे के छिलके, और नींबू के बीज से बनाई गई उनकी राखियां न केवल रक्षाबंधन के त्यौहार में नया लुक देती हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक नया पौधा भी तैयार करती हैं। ये राखी जहां टूटकर जमीन पर गिरती है, वहां एक पौधे का जन्म होता है। भाई के साथ पर्यावरण की रक्षा का संदेश तो ये राखियां दे ही रहीं हैं, महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता और आर्थिक सुरक्षा का संदेश इनमें छिपा है। जनजाति क्षेत्रों की ये लड़कियां न केवल ईको फ्रेंडली राखी बल्कि ज्वेलरी, क्राफ्ट आइटम और फर्नीचर भी बना रही हैं। सूक्ष्म और लघु उद्योग मंत्रालय के तहत जनजाति क्षेत्रों में चलाई जा रही स्मृति योजना के तहत यह काम न केवल जनजातीय लोगों की विलुप्त होती हुई कला को बचा रहा हैं बल्कि उन्हें रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध करा रहा हैं। इनकी राखी में आदिवासी समुदाय की विलुप्त होती बांस की कला का प्रदर्शन है और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी। ये लड़कियां भुट्टे के छिलके, बांस की बारीक कलाकारी और फलों के बीजों से सुंदर और आकर्षक राखियां बनाती हैं। ये राखियां भाइयों की कलाइयों पर बंध कर सुरक्षा का भाव तो पैदा करेंगी ही, जब यह टूट कर गिरेंगी तो वहां पर एक नया पौधा भी तैयार करेंगी। इन राखियों के अंदर फलों के बीज भी मौजूद हैं। इन्होंने बांस से ही एक आकर्षक बॉक्स तैयार किया है, जिसमें राखियों के साथ महुआ के लड्डू और कुमकुम चावल भी रखे हुए हैं। उत्पाद की मार्केटिंग के लिए यह स्ट्रेट्जी बनाई गई है। यह केंद्र आदिवासी तहसील खालवा के वन ग्राम गोलईमाल में स्थित है। यहां भील ,भिलाला, गोंड कोरकू जनजाति समुदाय की लगभग 120 लड़कियां काम कर रही है। बांस के फर्नीचर और क्राफ्ट बनाने में ऐसे आदिवासी युवा भी काम कर रहे हैं जिनका परंपरागत अनुभव है। आदिवासी समुदाय की विलुप्त हो रहे बैम्बू आर्ट से घर के ड्राइंग रूम को सजाने वाले क्राफ्ट आइटम, सुंदर फर्नीचर और महिलाओं के श्रृंगार के वह सभी आभूषण तैयार किए जा रहे हैं। इन लड़कियों के बनाए हुए माल के लिए देश के अनेक हिस्सों से ऑर्डर भी मिल रहे हैं> यहां काम करने वाली लड़कियां केवल सात दिन की ट्रेनिंग में राखी से लेकर ड्रॉइंग रूम में लगने वाली घड़ी, फ्लावर पॉट, मोबाइल स्टैंड और सोफासेट तक बनाने में सक्षम हैं। लड़कियों का कहना है कि पहले वे खेतों में मजदूरी या जंगल में लकड़ियां बीनने का काम करती थी, लेकिन जब से इस केंद्र से जुड़ी हैं उन्हें पर्याप्त रोजगार मिल रहा है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है।
from Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश न्यूज़, Madhya Pradesh Samachar, मध्य प्रदेश समाचार, Madhya Pradesh Ki Taza Khabar, मध्य प्रदेश की ताजा खबरें, MP News | Navbharat Times https://ift.tt/387s3H6
via IFTTT