महिला आरक्षण: लालू-मुलायम की सीनाजोरी ने लटकाया बिल, जारी है 25 साल का इंतजार

Women's Reservation Bill : संसद और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान वाला विधेयक पिछले 25 साल से लटका हुआ है। चार बार संसद में बिल पेश तो हुआ मगर कभी दोनों सदनों से पास नहीं हो पाया।

दशक भर से ज्यादा पहले की बात है। 2008 में तत्कालीन विधि मंत्री एचआर भारद्वाज राज्यसभा में 'नया और बेहतर' महिला आरक्षण विधेयक पेश करने वाले थे। संसद के बाहर यूपीए के सहयोगी ही उसका विरोध कर रहे थे। बिल की मुखालफत करने वालों में दो क्षेत्रीय क्षत्रप प्रमुख थे। समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव। सपा के सदस्यों ने राज्यसभा में बिल पर चर्चा से पहले उसे छीनने और फाड़ने की कोशिश की। उस वक्त कुछ महिला सांसदों ने भारद्वाज के चारों ओर एक घेरा सा बनाकर उन्हें और बिल को बचाया। बिल स्टैंडिंग कमिटी को भेजा गया।
राज्यसभा में बिल दोबारा पेश होता, उससे पहले सपा और राजद ने यूपीए से समर्थन वापस ले लिया। बिल तो किसी तरह राज्यसभा से पास हो गया, मगर अगले चार साल तक लोकसभा से पारित नहीं कराया जा सका। 15वीं लोकसभा के भंग होते ही बिल लैप्स हो गया।
25 साल पहले, आज के ही दिन पेश हुआ था बिल

यह चौथी बार था जब संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश तो हुआ मगर पारित नहीं हो सका। 1996 में आज ही के दिन (12 सितंबर) को पहली बार संसद के पटल पर यह विधेयक रखा गया था। संसद में इस बिल की यात्रा अब भी जारी है। 1996 में पहली बार कोशिश करने के बाद बिल को फिर 1998, 1999 और 2008 में पास कराने की कोशिशें हुईं।
कभी इस बिल का 'प्रॉक्सी कल्चर' को बढ़ावा देने की बात कहकर विरोध हुआ तो कभी 'सरपंच पति' बढ़ जाएंगे, इसका डर दिखाकर। आज जब संसद में इस बिल को पहली बार पेश हुए 25 साल हो चुके हैं, तो यह सोचना चाहिए कि आखिर आधी आबादी वाली महिलाओं को 33% आरक्षण देने पर राजनीतिक दल एकजुट क्यों नहीं हो पा रहे।
आरक्षण के भीतर आरक्षण चाहते थे लालू और मुलायम

यूपीए-2 के दौरान महिला आरक्षण बिल पास होने की सबसे ज्यादा उम्मीद थी। जब बिल पेश हुआ, तब बीजेपी और लेफ्ट दल इसके समर्थन में थे। मगर लोकसभा में 22 सांसदों वाली सपा और 4 सांसदों वाली आरजेडी ने विरोध किया। मुलायम और लालू ने कहा कि वे विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसमें अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़ा वर्ग के हितों का ध्यान नहीं रखा गया है। मुलायम ने कहा था कि 'मुस्लिमों और दलितों के लिए आरक्षण होना चाहिए।'
लालू ने कहा था कि 'सरकार हम पर बिल लादने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस किसी की सुनना नहीं चाहती। बिल में असली भारत की झलक दिखनी चाहिए...कांग्रेस महिलाओं और मुस्लिमों को पीछे छोड़ रही है।' लोकसभा के भीतर सपा और राजद सांसदों ने खूब बवाल मचाया था।
17वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा महिला सांसद पर...

संसद के भीतर महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिहाज से 193 देशों की सूची में भारत 148वें स्थान पर है। PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, लोकसभा में इस समय 78 महिला सांसद हैं। यह सदन के इतिहास में अबतक सबसे ज्यादा है। पहली लोकसभा में केवल 24 महिला सदस्य थीं। कुल सांसदों में से 14% महिलाए हैं जो एक रेकॉर्ड हैं मगर अंतरराष्ट्रीय औसत करीब 22% का है।
कई राज्यों ने लोकल लेवल पर दे रखा है आरक्षण

भारत में केवल पश्चिम बंगाल ही ऐसा राज्य है जिसकी मुखिया एक महिला हैं। ममता बनर्जी वर्तमान में देश की इकलौती महिला मुख्यमंत्री हैं। अखिल भारतीय स्तर पर भले ही विधायिका में महिलाओं के लिए आरक्षण न हो, मगर कम से कम 20 राज्यों ने पंचायत स्तर पर महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दे रखा है। 2010 की एक रिसर्च बताती है कि पंचायतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने से पेयजल, इन्फ्रास्ट्रक्चर, सैनिटेशन की समस्या कम हुई है।
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