Bhopal Arts and Culture News: बुंदेली सोहर गीत सुन झूम उठे श्रोता, जनजातीय नृत्य ने भी मोहा मन

Bhopal Arts and Culture News: भोपाल मप्र शासन के संस्कृति विभाग की बहुविध कलानुशासन संबंधी गतिविधियों पर एकाग्र 'गमक' श्रृंखला के अंतर्गत मंगलवार शाम को जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी की ओर से भोपाल के शुभम यादव और साथियों ने बुंदेली लोकगीत पेश किए एवं छिंदवाड़ा के दादूलाल दांडोलिया एवं साथियों ने भारिया जनजातीय नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम की शुरुआत शुभम यादव और साथियों के बुंदेली गायन से हुई। कलाकारों ने गणेश वंदना- आ जाइओ आ जाइओ गजानंद आ जाइओ.. से अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की। इसके बाद सोहर गीत- मोरी मैया के अंगना खेले ललना..., गारी गीत- पीले हाथ पिता ने कर दये..., लोक गीत- इनकी पतली कमर नाजुक वैया..., बने दुल्हा छव देखो भगवान की, सिया बनी दुल्हन जानकी... और मन बस गई चिरइया रंग बारी... जैसे लोकगीत पेश करते हुए ऑनलाइन श्रोताओं का मनोरंजन किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का समापन चुनरिया को करो ने गुमान... गीत से किया। मंच पर गायन में शुभम यादव, हरीश विश्वकर्मा, हारमोनियम पर महेंद्र सिंह चौहान, झींका वादन में संजय यादव, मंजीरा पर भूपेंद्र शर्मा, आशाराम शर्मा एवं ढोलक पर नितेश ठाकुर ने संगत दी।
दूसरी प्रस्तुति दादूलाल दांडोलिया एवं साथियों द्वारा भारिया जनजातीय के पारंपरिक नृत्य भड़म की हुई। भड़म नृत्य कई नामों से प्रचलित है, इसे गुन्ना साही, भड़नी, भड़नई, भरनोटी या भंगम नृत्य भी कहा जाता है। विवाह के अवसर पर किया जाने वाला यह समूह नृत्य भारियाओं का सर्वाधिक प्रिय नृत्य है। इसमें बीस से पचास-साठ पुरुष नर्तक और वादक भाग लेते हैं, इसमें ढोल, टिमकी और झांझ मुख्य वाद्य यंत्र होते हैं। टिमकी की संख्या ढोल से दोगुनी होती है। ढोल, टिमकी और झांझ की समवेत ध्वनि दूर गरजने वाले बादलों की गंभीर घोष की तरह सुनाई देती है। थोड़े-थोड़े विश्राम के साथ यह नृत्य रातभर चलता है।
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