Bhopal News : नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में जरूरी है समाज का योगदान : स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री

भोपाल यह देश की आजादी का 75वां वर्ष है। इस अवसर पर देशभर में 'आजादी का अमृत महोत्सव' मनाने की श्रंखला चल रही है। विभिन्न जगहों पर इस महोत्सव के तहत नए-नए आयोजन हो रहे हैं। इसी सिलसिले में राजधानी भोपाल स्थित सेंट्रल लाइब्रेरी में भी 'स्वाधीनता का अमृत महोत्सव और भोपाल" विषय पर विशेष व्याख्यान सत्र का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम में प्रदेश के स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर बलिदानियों और महापुरुषों के योगदान को याद करने के साथ ही 'आजादी का अमृत महोत्सव" नवीन भारत के निर्माण के चिंतन का पर्व है। आज का भारत आगे आने वाली भावी पीढ़ी को क्या देना चाहता हैं, इस पर विचार करने का वर्ष है।
स्कूल शिक्षा मंत्री परमार ने कहा कि अंग्रेजों ने हमारी सनातन शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त किया और हम आजादी के बाद अब तक अंग्रेजों की शिक्षा व्यवस्था ही चला रहे थे। अब इस शिक्षा व्यवस्था में नई शिक्षा नीति के द्वारा अमूल-चूल परिवर्तन लाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति से निर्मित व्यक्तित्व एक नवीन स्वावलंबी और आत्म-निर्भर भारत का निर्माण करेगा। नई शिक्षा नीति के निर्माण के लिए हमारे वैज्ञानिकों साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों और अनेको संस्थाओं ने अथक मेहनत की है। अब समाज के साथ मिलकर नई शिक्षा नीति को क्रियान्वित किया जाना है।
इसलिए आप सभी इसके क्रियान्वयन में अपना-अपना योगदान दें और नए संकल्प एवं नई दिशा के साथ आत्म-निर्भर भारत का निर्माण करें। इस अवसर पर स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. उद्धवदास मेहता के पुत्रगण ओम मेहता, गोपाल और गोविंद मेहता का शॉल और पुष्पगुच्छ से सम्मान भी किया।
कार्यक्रम में राज्य एकता समिति के उपाध्यक्ष और मुख्य वक्ता रमेश शर्मा ने कहा कि भारतवासियों को सिर्फ शरीर की दासता से ही नहीं बल्कि मस्तिष्क, मन और आत्मा की दासता से भी मुक्त होना है। शर्मा ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भोपाल के महत्व को बताते हुए कहा कि भोपाल सिर्फ परमारकालीन नगर न होकर हजारों वर्षों पूर्व एक वैदिककालीन नगर रहा है।
आयुक्त लोक शिक्षण अभय वर्मा ने कहा कि 'आजादी का अमृत महोत्सव" भारत की उपलब्धियों, स्वर्णिम इतिहास और भविष्य की योजनाओं पर चिंतन करने का वर्ष है। यह वर्ष निष्पक्ष रूप से उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और कर्म योद्धाओं को इतिहास में स्थान देने का वर्ष है, जिन्हें उचित सम्मान और स्थान नही मिला है।
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