Caste Based Census News: नीतीश कुमार के बाद रामदास आठवले ने भी किया जातिगत जनगणना का समर्थन, मोदी के मंत्री ने कहा - 50 फीसदी से ज्यादा हो सकता है आरक्षण
इंदौर : जातिगत जनगणना के मुद्दे पर जारी राजनीति के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट के एक मंत्री ने भी इसका समर्थन कर दिया है। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले () ने शनिवार को कहा कि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) जातिगत जनगणना के पक्ष में है। उनकी पार्टी का मत है कि सरकार को जाति के आधार पर नागरिकों की गिनती पर विचार करना चाहिए। हाल में बिहार के सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य के राजनीतिक दलों का प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिलकर इसकी मांग कर चुका है।
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भी एनडीए का हिस्सा है और केंद्रीय कैबिनेट में उसके सदस्य शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब 23 सितंहर को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट () को बताया कि पिछड़े वर्ग की जाति जनगणना एडमिनिस्ट्रेटिव तौर पर कठिन और बोझिल कार्य है। सोच समझकर एक नीतिगत फैसले के तहत इस तरह की जानकारी को जनगणना के दायरे से अलग रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट () में केंद्र सरकार की ओर से इस मामले में हलफनामा दायर किया गया था।
इसमें कहा गया कि सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना 2011 में की गई थी और उसमें कई गलती और त्रुटियां थीं। आठवले ने इंदौर में एक सवाल के जवाब में कहा, "मेरी पार्टी का मत है कि जाति के आधार पर जनगणना होनी चाहिए। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।" उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी यह बात नहीं मानती कि देश में जातिगत जनगणना कराए जाने से जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा। आठवले ने क्षत्रियों के लिए आरक्षण की मांग का भी समर्थन किया, लेकिन सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर चल रहे विवाद पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि अलग-अलग राज्यों में क्षत्रिय जातियों को भी उनकी आबादी के आधार पर सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया जाना चाहिए। सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर राजपूतों और गुर्जरों के आमने-सामने आने पर मंत्री ने कहा कि दोनों समुदायों को इस विवाद का मिल-जुलकर समाधान निकालना चाहिए। आठवसे ने इस तर्क को भी मानने से इंकार कर दिया कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती।
ऐतिहासिक इंदिरा साहनी प्रकरण के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण की सीमा को 50 फीसद से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता, लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केवल अपना अभिमत दिया है।” उन्होंने दावा किया कि संविधान में संशोधन के बाद राज्य सरकारों को अधिकार मिल गया है कि जरूरत महसूस होने पर वे वंचित वर्गों को कुल मिलाकर 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण देने पर विचार कर सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की ओर से याचिका दायर की गई है जिसमें मांग की गई है कि केंद्र और संबंधित अथॉरिटी को निर्देश दिया जाए कि वह राज्य को एसईसीसी (सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना) 2011 में दर्ज ओबीसी के जातीय आंकड़ों की जानकारी मुहैया कराएं। याचिका में राज्य सरकार ने कहा कि उन्होंने बार- बार इसके लिए गुहार लगाई लेकिन जानकारी नहीं दी गई।
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