Top Story

Corruption in MP Politics: जब एमपी के सीएम ने फाइल पर लिखी टिप्पणी, ‘मेरे मंत्री ने रिश्वत ली है, इसलिए प्रस्ताव को मंजूरी देता हूं’


भोपाल 
मध्य प्रदेश की राजनीति में भ्रष्टाचार () की शुरुआत इसके गठन के बाद ही शुरू हो गई थी, लेकिन 1967 में बनी संविद सरकार () के दौरान भ्रष्ट आचरण के ऐसे-ऐसे मामले सामने आए जिनकी चर्चा आज भी होती है। 19 महीने चली यह सरकार राजमाता विजयाराजे सिंधिया के अपमान के चलते बनी थी। पचमढ़ी में द्वारिका प्रसाद मिश्र ने राजमाता के साथ जो व्यवहार किया था, इसके बदले उन्होंने कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता से बाहर करने की ठान ली और ऐसा करके ही मानी। दलबदल के बूते बनी इस सरकार को गठन में वो सारे हथकंडे अपनाए गए जिनका इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियां आज करती हैं। विधायकों को पाला बदलने के लिए पद और पैसों का प्रलोभन, फाइव स्टार होटलों में विधायकों की खेमेबंदी, बंदूक से जनप्रतिनिधियों की निगरानी- एमपी में ये सब कुछ 1960 के दशक में तब हुआ जब दूसरे राज्यों में ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते थे। प्रलोभन और जोर-जबरदस्ती के सहारे बनी सरकार में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ जिसके किस्से आज तक मशहूर हैं। संविद सरकार के मंत्री भ्रष्टाचार में इस कदर मशगूल थे कि एक बार तो मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह ने फाइल पर ही लिख दिया () कि इसके लिए उनके मंत्री ने रिश्वत ली है, वो भी चेक से। मामला सिंचाई विभाग से जुड़ा था। संविद सरकार में सिंचाई मंत्री बृजलाल वर्मा ने लिफ्ट इरिगेशन के लिए पंप सेट खरीदने का प्रस्ताव रखा था। इसके लिए मुख्यमंत्री की मंजूरी आवश्यक थी, क्योंकि खरीदी प्रक्रिया में तय मापदंडों का बायपास किया गया था। उस समय आरसीवीपी नरोन्हा मुख्य सचिव और एसबी लाल सिंचाई सचिव थे। दोनों ने प्रस्ताव का विरोध किया। जब ये फाइल मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के पास पहुंची तो वे पसोपेश में पड़ गए। फिर उन्होंने फाइल पर लिखा कि वे मुख्य सचिव और सिंचाई सचिव की बातों से सहमत हैं। इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी जा सकती क्योंकि यह अनैतिक है। मुख्यमंत्री ने आगे लिखा कि इसके बावजूद वो प्रस्ताव को मंजूरी दे रहे हैं क्योंकि वे सिंचाई मंत्री की मजबूरी को समझते हैं। सिंचाई मंत्री ने इस प्रस्ताव को मंजूर कराने के लिए 20 हजार रुपये की रिश्वत ली है, वो भी चेक से। फाइल पर मुख्यमंत्री का कमेंट देखकर अधिकारी भौंचक्के रह गए। मुख्य सचिव नरोन्हा भागते हुए मुख्यमंत्री के पास पहुंचे और उनसे प्रस्ताव को मंजूरी नहीं देने की गुजारिश की। तब मुख्यमंत्री ने फाल पर दोबारा नोट लिखा कि मुख्य सचिव ने फाइल वापस भेजी है और सलाह दी है कि इसे स्वीकृति देना अनुचित है। मैं मुख्य सचिव की सलाह से सहमत हूं और प्रस्ताव अस्वीकृत करता हूं। इसके बाद मुख्य सचिव फिर भागकर मुख्यमंत्री के पास पहुंचे। उन्होंने गोविंद नारायण सिंह से पहले की टिप्पणी हटाने का आग्रह किया जिसमें सिंचाई मंत्री के भ्रष्टाचार की बात उन्होंने लिखी थी। मुख्यमंत्री ने उनकी बात नहीं मानी। गोविंद नारायण सिंह ने कहा कि इसे रेकॉर्ड में ही रहने दें। बृजलाल वर्मा मूर्ख हैं। उन्हें यह भी नहीं मालूम कि रिश्वत चेक से नहीं ली जाती।


from Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश न्यूज़, Madhya Pradesh Samachar, मध्य प्रदेश समाचार, Madhya Pradesh Ki Taza Khabar, मध्य प्रदेश की ताजा खबरें, MP News | Navbharat Times https://ift.tt/3gOzAiQ
via IFTTT