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Indore News: सूक्ष्म लघु उद्यम फेसिलिटेशन काउन्सिल अब ब्याज के साथ दिलवाएगा उद्योगों को पैसा



इंदौर,  News। सरकारी उपक्रमों पर उद्योगों के बकाया और लेन-देन के मामलों के लिए बनी सूक्ष्म लघु उद्यम फेसिलिटेशन काउन्सिल अब हर महीने में दो बार बैठक करेगी। सोमवार को भोपाल में आयोजित बैठक में अधिकारियों ने यह घोषणा की है। इंदौर के उद्योगपतियों की काउंसिल की कार्यप्रणाली बेहतर बनाने के लेकर भोपाल में अधिकारियों के साथ बैठक हुई।


 इससे पहले इंदौर के उद्योगपतियों ने ही काउंसिल की अव्यवस्था और अधिकारियों की मनमानी को मुख्य सचिव तक पहुंचाया था। इसके बाद पूर्व प्रमुख सचिव विवेक पोरवाल का विभाग बदल दिया गया था और अब काउंसिल में कसावट लाई जा रही है।


सोमवार को एसोसिएशन आफ इंडस्ट्रीज मध्यप्रदेश (एआइएमपी) के अध्यक्ष प्रमोद डफरिया के साथ एसोसिएशन के एक प्रतिनिधिमंडल ने एमएसएमई विभाग संयुक्त संचालक राजेश अग्रवाल से मिला। बीते दिनों की शिकायत के बाद काउंसिल के पुर्नगठन और व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए प्रमुख सचिव उद्योग पी. नरहरी की ओर से इंदौर के उद्योगपतियों को बैठक के लिए बुलावा भेजा गया था।


 बैठक में एआइएमपी के मानद सचिव सुनील व्यास, उपाध्यक्ष श योगेश मेहता एवं उद्योगपति किशोर बुंदेला मध्यप्रदेश सूक्ष्म, लघु उद्यम फेसिलिटेशन कॉउन्सिल के लंबित प्रकरणों के त्वरित निराकरण कराने की मांग रखी। लगभग डेढ घंटे चली इस बैठक में संयुक्त संचालक ने कहा कि काउंसिल अब प्रतिमाह दो बार प्रकरणों की सुनवाई करेगा इसके लिए एक आदेश भी जारी किया गया है। इससे धीमी गति से निराकृत हो रहे प्रकरणों के निपटान को गति मिलेगी।


अध्यक्ष प्रमोद डफरिया ने बताया कि इंदौर जिले के ही 300 प्रकरण लंबित है इनके लिए जल्द ही कार्यवाही होना चाहिए। अधिकारी ने कहा कि भविष्य में लंबित प्रकरणों में भुगतान आदेश ब्याज सहित जारी किए जाएंगे। आपने आगे बताया कि ऐसे लंबित प्रकरण जिनकी एक बार भी सुनवाई नही हुई है उनकी सुनवाई हेतु अतिरिक्त बैठक की जायेगी, प्रत्येक प्रकरणों की सुनवाई तिथि नियत की जाएगी, वहीं काउंसिल द्वारा सुनवाई उपरांत पारित अंतिम आदेश दो दिन में विभागीय पोर्टल पर अपलोड कर दिए जाएंगे।


 उद्योग आयुक्त द्वारा जारी आदेश तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है। उल्लेखनीय है कि मुख्य सचिव के सामने बीते दिनों इन्हीं उद्योगपतियों ने एक आदेश रख दिया था, जिसमें पूर्व प्रमुख सचिव में कुछ लाख रुपये के मूलधन पर करोड़ रुपये का ब्याज देने का आदेश पारित कर दिया था। जबकि अन्य सैकड़ों प्रकरण में सुनवाई ही नहीं हो रही थी।


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