Bhopal Arts and Culture News: जनजातीय युवा साहित्यकारों की बढ़ गई है जिम्मेदारी : डॉ मुकेश मिश्र

भोपाल (नवदुनिया रिपोर्टर)। राजधानी में स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में पंचम जनजातीय साहित्य महोत्सव में जनजातीय वाचिक परंपरा गीत एवं कथाओं की प्रस्तुति के संदर्भ में पद्मश्री सम्मान प्राप्त हलधर नाग ने अपनी संबलपुरी भाषा में अपने क्षेत्र की आदिवासी संस्कृति का वर्णन किया। इसके समापन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. मुकेश मिश्र, निदेशक दत्तोपंत ठेगड़ी शोध संस्थान ने कहा कि आज देश में विद्यमान चुनौतियों के सामने जनजाति युवा साहित्यकारों तथा रचनाकारों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। वे ऐसा साहित्य रचने के लिए आगे आएं, जिससे राष्ट्रीय एकता को बल मिल सके।
शनिवार को समारोह के प्रथम सत्र में जनजातीय भाषा एवं साहित्य चिंतन : युवा जनजाति लेखकों का अवदान विषय पर जबलपुर के लक्ष्मण सिंह मरकाम ने कहा कि जनजातीय तथा क्षेत्रीय भाषा में निहित ज्ञान-परंपरा से अन्य भाषा-साहित्य के बीच संवाद आवश्यक है, तभी हम एक-दूसरे की संस्कृति और संवेदना को समझ सकेंगे। जनजातीय भाषा संस्कृति व पारंपरिक ज्ञान के साहित्य को हिंदी, अंग्रेजी व अन्य भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवादित करके सामने लाने की जरूरत है।
वहीं भोपाल के लक्ष्मीनारायण पयोधि ने युवा जनजाति लेखकों के अवदान पर कहा कि साहित्य वाचिक हो या लिखित, वो भाषा में ही निहित होता है। व्यवहार में आने वाली भाषा कभी लुप्त नहीं होती। घोटुल एक शब्द नहीं यह सांस्कृतिक धारा है। गोंडी भाषा की मौखिक भाषा काफी समृद्ध है। डॉ. नवीन नंदवाना, उदयपुर ने सभी युवा रचनाकारों एवं उनकी कृतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि गुरु परंपरा जनजाति समाज में विद्यमान है और नये लेखकों की लंबी कतार है।
उन्हें प्रोत्साहन की जरूरत है। द्वितीय सत्र में जनजातीय वाचिक परंपरा - गीत एवं कथाओं की प्रस्तुति एवं जनजातीय की उत्पत्ति पर डॉ. श्याम सुंदर दुबे, हटा ने कहा कि प्रकृति के उपासक और प्रकृति से घनिष्ठ आदिवासियों में प्रेम की अनुभूतियों का विस्तार, व्यक्ति प्रेम से लेकर प्रकृति प्रेम असीमित है।
from Nai Dunia Hindi News - madhya-pradesh : bhopal https://ift.tt/3oOC9qe