बाघिन सीता और बाघ चार्जर की अनूठी प्रेम कहानी: बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व
सीता और चार्जर के वशंजों से गुलजार है बाधवगढ़
बांधवगढ़ पार्क के नेचुरलिस्ट जगत चतुर्वेदी का कहना है कि चार्जर और सीता के वंशजों से ही बांधवगढ़ गुलजार है। इनकी तकरीबन दसवीं पीढ़ी चल रही है, इनके पहले मिलन से दो नर बाघ पैदा हुए- बड़ा बच्चा और लंगडू, लंगडू एक पैर से लंगड़ाता था। यहां चार्जर का वो पक्ष भी देखने को मिला जो अमूमन मेल टाइगर्स में नजर नहीं आता। चार्जर ने चार साल की उम्र तक लंगड़ू को बर्दाश्त किया, दूसरे बाघों की तरह खदेड़ा नहीं।
टाइगर टूरिस्म
वन्यजीव प्रेमियों के अनुसार बांधवगढ़ का सबसे प्रसिद्ध बाघ चार्जर हुआ है। बांधवगढ़ के इस बाघ ने नब्बे के दशक में चक्रधारा के जंगलों में एकछत्र राज किया। अपनी संगिनी शेरनी सीता के साथ बाघों के परिवार को बढ़ाने में चार्जर का महत्वपूर्ण योगदान रहा। सामान्यतः एक बाघ का जीवनकाल 12 से 15 वर्ष का होता है, लेकिन एक दशक तक चार्जर का एकछत्र राज अपने आप में असाधरण है। आईएफएस अधिकारी शहबाज खान ने अपनी किताब 'चार्जर: द लांग लाइविंग टाइगर' में चार्जर के उत्कृष्ट जीवन का विस्तृत वर्णन किया है। जब बांधवगढ़ का जंगल अवैध कटाई और शिकार के दबाव से जूझ रहा था तब इसे सीता और चार्जर ने आबाद किया। इसी के साथ शुरू हुआ एक नया टाइगर टूरिस्म का दौर।
सुर्खियां बटोर रही थी सीता और चार्जर की जोड़ी
नेचुरिलिस्ट जगत चतुर्वेदी बताते है कि वैसे तो कोई बाघिन शिकार करती है तो उसे वह अपने बच्चो के साथ साझा करती है और मेल टाइगर को खाने से रोकती हैं पर उस दौरान अनूठी बात यह देखने को मिलती थी कि सीता चार्जर को शिकार खाने के लिए परमिट करती थी। यहां तक कि चार्जर अधिकतर सीता द्वारा किए गए शिकार पर ही निर्भर रहता था। अमूनन शेरनी सीता और चार्जर की जोड़ी भी पूरे विश्व के वन्यजीव प्रेमियों के बीच सुर्खियां बटोर रही रही थी।
दोनों ने बांधवगढ़ में ही त्यागे प्राण
सीता की प्रसिद्धि उसके जीवन का अकाल बन गई। शिकारियों की जद में आई सीता और चार्जर का साथ छूट गया। चार्जर ने सीता के बाद किसी भी शेरनी के साथ संबंध नहीं बनाया। उसके बाद चार्जर में वो फुर्ती देखने को नहीं मिली। जून 2000 में बी-2 के साथ हुई टेरिटोरियल फाइट में चार्जर घायल हो गया। घायल चार्जर को वनविभाग ने किसी चिड़ियाघर में शिफ्ट करने की योजना बनाई पर चार्जर ने अपने गौरव, पराक्रम और राजकाज को खत्म नहीं होने दिया। चार्जर ने बांधवगढ़ की धरा में ही अंतिम सांस ली।
गौरतलब है कि सीता और चार्जर की जोड़ी ने भारतीय वन्यजीवों के इतिहास में विशेष महत्व रखती है, दोनों के बीच असीम प्रेम की वजह से बांधवगढ़ में बाघों के बेहतर भविष्य के लिए रास्ता बन पाया। बाघ का जब जब जिक्र होगा हिंदुस्तान के दिल मे बसे बांधवगढ़ का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। आज सीता और चार्जर के पगमार्क भले ही समय की रेत पर धूमिल हो गए है पर दोनों की अमरप्रेम कहानी बांधवगढ़ की लोककथाओं के साथ साथ वन्यजीव प्रेमियों के बीच सदैव अमर रहेगी।