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पार्किंसंस के इलाज में असरदार हो सकता है डीबीएस का ये सटीक तरीका - रिसर्च

Treatment of Parkinson Disease : ब्रेन डिसऑर्डर (Brain Disorder) पार्किंसन डिजीज (Parkinson Disease) में इंसान को चलने में परेशानी के अलावा शरीर में कंपन, अकड़न और असंतुलन जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. पार्किंसन की वजह से मरीज की कई बार बोलने में जुबान लड़खड़ाती है और लिखने पर हाथ कांपने लगते हैं. वहीं इससे मेंटल बिहेवियर में बदलाव, नींद की कमी, डिप्रेशन और मेमोरी लॉस जैसी समस्‍याएं भी बढ़ने लगती है.



 दैनिक जागरण अखबार में छपी खबर के मुताबिक अब पार्किंसंस रोग के इलाज की एक नई उम्मीद जागी है. अमेरिका की कानेर्गी मेलान यूनिवर्सिटी यानी सीएमयू (Carnegie Mellon University) के रिसर्चर्स ने डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) का एक सटीक तरीका खोजा है, जो मौजूदा किसी भी थेरेपी से ज्यादा कारगर साबित हो सकता है. ये रिसर्च साइंस जर्नल (Science Journal) में प्रकाशित हुई है.



सीएमयू की गिटिस लैब की आर्यन एच गिटिस (Aryn h. Gittis) और सहयोगियों द्वारा की गई ये स्टडी पार्किंसंस के इलाज में काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. इस विधि में शरीर की गतिविधि (मूवमेंट) को कंट्रोल करने वाले ब्रेन के हिस्से को इलेक्ट्रिकल सिग्नल भेजने के लिए डीबीएस प्रोसेस में प्रत्यारोपित (Implanted) पतले इलेक्ट्रोड्स (Thin electrodes) की सक्षमता को बढ़ाने की कोशिश की है.



क्या होगा फायदा
यह मरीज के शरीर की अवांछित अनियंत्रित गतिविधि (unwanted uncontrolled activity) को कंट्रोल करने का कारगर तरीका हो सकता है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि रोगी को लगातार इलेक्ट्रिकल स्टिमुलेशन (उद्दीपन/उत्तेजित या जाग्रत करने की क्रिया) मिलता रहे. यदि ये उद्दीपन बंद हो जाता है, तो लक्षण तत्काल ही प्रकट हो जाते हैं.


नए प्रोटोकॉल में क्या अलग है
गिटिस के अनुसार, पार्किंसंस के इलाज में ये बड़ी प्रोग्रेस है. दरअसल डीबीएस के अन्य प्रोटोकॉल में जैसी ही उद्दीपन बंद किया जाता है, लक्षण तुरंत ही प्रकट हो जाते हैं. लेकिन नए प्रोटकॉल में उद्दीपन का असर कम से कम चार गना अधिक समय तक बना रहता है. इस प्रोटोकॉल में रिसर्च करने वालों ने ब्रेन के ग्लोबस पैलीडस (इलेक्ट्रिकल स्टिमुलेशन वाले एरिया) में खास प्रकार के न्यूरॉन को टारगेट बनाया. अब कोशिश है कि इसका विशिष्ट तरीके (specific ways) से यूज करने का रास्ता खोजा जाए. इसी क्रम में उन कोशिकाओं की स्टडी में इस बात का पता लगाया गया है कि क्या ऐसा कुछ है, जो उसे संचालित करता है?


इस स्टडी की प्रमुख लेखिका टेरिसा स्पिक्स (TERESA A. SPIX) ने बताया कि साइंटिस्ट अभी तक इस बात से पूरी तरह वाकिफ नहीं है कि डीबीएस क्यों काम करता है. ऐसे में हमारा काम अंधेरे में हाथ पैर मारने जैसा था. लेकिन हमारे शॉर्ट्स बर्स्ट एप्रोच (shorts burst approach) ने रोग के लक्षणों से बड़ी राहत दी है. प्रयोग से कुछ सवाल उठे हैं, जिनके जवाब मिलने से निकट भविष्य में रोगियों को मदद मिल सकती है.

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