एंटीबॉडी कम होने पर भी कोरोना से मुकाबला कर सकता है टी सेल, एक्सपर्ट से जानिए कैसे
T Cells Compete With Corona : कोरोना वायरस से जुड़े सवालों के जवाब खोजने के लिए रिसर्च का सिलसिला पूरी दुनिया में जारी है. हालांकि अभी तक इसका कोई ठोस इलाज तो नहीं मिल पाया है. लेकिन शरीर की एंटीबॉडी बढ़ाने के लिए वैक्सीन के लगाने पर पूरा जोर है. दैनिक भास्कर अखबार में छपी रिपोर्ट में फार्मा एक्सपर्ट डॉ तुषार गोरे (Dr Tushar Gore) ने बताया है कि वैक्सीन लगाने के बाद शरीर में एंटीबॉडी के कमजोर होने पर किस तरह से टी सेल वायरस का मुकाबला करने में सक्षम है.
डॉ गोरे का कहना है कि इजराइल और अमेरिका से मिले आंकड़ों के मुताबिक वैक्सीन के बाद कोरोना संक्रमण से सुरक्षा में गिरावट आई है. लेकिन वो इसमें एक बात को लेकर काफी आश्वस्त हैं कि वैक्सीन के चलते इन देशों में अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की दर में गिरावट आई है.
डॉ गोरे का कहना है कि ऐसे ही कुछ आंकड़ें यूके यानी यूनाइटेड किंगडम से भी आए हैं, वहां भी अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की दर में गिरावट देखी गई है. उन्होंने इस रिपोर्ट में वैक्सीन, एंटीबॉडी और इम्यून सिस्टम पर उसके असर से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए हैं.
वायरस हमारे शरीर में कहां से हमला करता है?
इस रिपोर्ट में प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम (Immune System) के बारे में बताते हुए डॉ गोरे कहते हैं कि ये एक जटिल सामूहिक प्रक्रिया है, जो हमें बैक्टीरिया और वायरस से बचाती है. वो कहते हैं कि वायरस हमारे शरीर में दो जगहों पर हमला करता है. एक-परिसंचरण तंत्र यानी सर्कुलेट्री सिस्टम (circulatory system) जहां से वह शरीर में घूमता है. दूसरा- ऊतकों की कोशिकाएं यानी टिशू सेल्स (tissue cells) हैं, इन हमला कर वायरस कई गुना बढ़ता है.
डॉ गोरे बताते हैं कि शरीर में वायरस से लड़ने वाला का पहला हथियार है एंटीबॉडी. ये बड़े प्रोटीन अणु (molecule) होते हैं, जो वायरस से मुकाबले के लिए लॉक-इन कर सेल्स पर हमला रोकते हैं. एंटीबॉडी शरीर की पहली रक्षा पंक्ति होती है. लेकिन वायरस के शरीर के सेल्स में एंट्री के बाद एंटीबॉडी अप्रभावी (ineffective) हो जाती हैं. ऐसे में किलर टी सेल का रोल शुरू होता है.
गंभीर बीमारी से बचाएगा टी सेल
डॉ गोरे का कहना है कि कोरोना का टीका दोहरी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Dual Immune Response) करता है. एंटीबॉडी का लेवल समय के साथ घटता है. एंटीबॉडी उत्पादन के लिए सिस्टम में मेमोरी होती है. कमजोर एंटीबॉडी से भले ही कोरोना हो जाए, लेकिन यदि टी सेल की प्रतिक्रिया बरकरार है, तो गंभीर बीमारी नहीं होगी.
तीसरी डोज कितनी मददगार
डॉ गोरे के अनुसार, कोरोना वैक्सीन की दो डोज के बाद अस्पताल में भर्ती होने की दर बहुत कम हो जाती है. तीसरी डोज से एंटीबॉडी के लेवल में सुधार होता है. कुछ देश हाई रिस्क वाली पॉपुलेशन को तीसरी डोज भी दे रहे हैं.
वैक्सीन की डोज का असर कब तक
डॉ गोरे कहते हैं कि कोरोना की जो भी वैक्सीन अभी बनी है, वो सारी कोविड के मूल वुहान स्ट्रेन पर बेस्ड हैं. टीके की दो या तीन डोज कब तक प्रभावी रहेगी? नए वेरिएंट से कितनी सुरक्षा मिलेगी? इसके बारे में अभी कुछ नहीं कह सकते हैं. क्योंकि अभी दुनिया के सामने बड़ी चुनौती वैक्सीनेटेड लोगों और अनवैक्सीनेटेड लोगों के बीच वायरस के संक्रमण को रोकना है.
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