Top Story

Durgotsav 2021: खुशी है कि ईश्वर ने इस योग्य बनाया कि अपनों के काम आ सकी

 
जबलपुर,नारी यदि चाह ले तो उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। अगर वे मां बनकर अपने बच्चों का लालन-पालन कर सकती है तो जरूरत होने पर छोटे भाई-बहनों को भी पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा कर सकती है। नवरात्र के नौ दिनों में मां के विभिन्न रूपों की आराधना की जा रही है। सप्तमी के दिन जननी, पालनकर्ता, परिश्रमी व दृढ़ता के स्वरूप के साथ परिवार की रक्षा के लिए साहस की मूर्ति बनकर सामने आने वाली स्त्रियों में मां कालरात्रि का स्वरूप नजर आता है।

 
प्रधान महिला आरक्षक के पद पर काम करने वाली नीलम उपाध्याय मां के इसी स्वरूप के समान अपने परिवार के साथ हमेशा खड़ी रही हैं। नमो देव्यै महादेव्यै के अंतर्गत आइए जानते हैं नीलम के अंदर छिपे साहस और दृढ़ता को।


नीलम ने बताया कि उनके पिता गोकरण मिश्रा एनसीसी कार्यालय में प्यून के पद पर थे और मां रामवती गृहिणी थीं। पांच बहनों और एक भाई के बीच मैं तीसरे नंबर की संतान हैं। 1993 में पिता सेवानिवृत्त हो गए। उस समय तक दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी और मैंने मैट्रिक कर लिया था। पिता जी को 1600 रुपये पेंशन मिलती थी। घर पर शुरू से आर्थिक परेशानी थी जो पिता की सेवानिवृत्ति के बाद और भी बढ़ गई। मेरे छोटे भाई-बहन उस समय 12-13 साल के थे। मैंने पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन जब घर की हालत देखी तो एक दिन दृढ़ता से निर्णय लिया कि कुछ तो करना पड़ेगा।


पुलिस में महिला भर्ती निकली थी, आवेदन दिया और 1991 में आरक्षक के पद पर नौकरी मिल गई। उस समय मेरा वेतन 3600 रुपये था। मैंने घर की पूरी जिम्मेदारी उठा ली। मुझे लगा कि मेरे परिवार को मेरे इस निर्णय की बहुत जरूरत थी। भाई-बहन को पढ़ाया। आज दोनों ही पुलिस विभाग में ही नौकरी कर रहे हैं अपने पैरों पर खड़े हैं। नौकरी करते हुए मेरी शादी हो गई। परिस्थितियाें को देखते हुए जहां शादी हुई उनकी पहली पत्नी से एक बेटी थी। इसके बाद मेरी भी एक बेटी हुई। बड़ी बेटी की शादी की और अब छोटी बेटी को पढ़ा रही हूं।

नीलम का कहना है कि मैंने कई लोगों को देखा है जो परिवार के लिए कुछ नहीं करना चाहते। जबकि मेरा तो मन ही माना कभी ऐसा सोचने के लिए भी। मुझे हमेशा यही लगा कि मैं परिवार के लिए जो-जो कर सकूं कर लूं। अभी भी मेरे माता-पिता मेरे साथ ही रहते हैंं। मुझे लगता है कि मैं सौभग्यशाली हूं जो मुझे माता-पिता की सेवा करने का अवसर मिला है।


 लोग कहते हैं कि पूरा जीवन निकाल दिया दूसरों के लिए करते-करते। मैं कहती हूं कि इनमें दूसरा कोई नहीं है सभी मेरे हैं। माता-पिता हैं तो मैं हूं। इसलिए उनके लिए जितना कर सकूं उतना कम है। भाई-बहन भी माता-पिता का ध्यान रखते हैं। उम्र के पांचवे दशक में आने के बाद संतुष्टि है कि संघर्ष जरूर रहा लेकिन ईश्वर ने मुझे अपनों के काम आने के योग्य बनाया।

https://ift.tt/3FG87L0 https://ift.tt/3lXpVZ7