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Navratri 2021 Indore: ओड़िशा के 32 कारीगर संगमरमर में उकेर रहे शक्ति के नौ स्वरूप



 इंदौर,  माता भक्तों के बीच आस्था का केंद्र पश्चिम क्षेत्र स्थित अन्नपूर्णा माता मंदिर 20 करोड़ की लागत से नवीन स्वरूप धारण कर रहा है। नवीन मंदिर में ओड़िशा के 32 कलाकार संगमरमर पर माता के नौ स्वरूपों को उकेर रहे हैं। इसके साथ दस महाविद्या और 64 योगिनियों सहित माता की विभिन्न लीलाएं मंदिर के सभा मंडप और गर्भगृह में नजर आएंगी। 6600 वर्गफीट में निर्मित हो रहे मंदिर की बाहरी दीवारों पर कृष्ण लीलाओं और महाभारत के विभिन्न प्रसंगों का चित्रण भी किया जा रहा है।

अन्नपूर्णा आश्रम ट्रस्ट के महामंडलेश्वर विश्वेश्वरानंद महाराज बताते हैं कि नवीन मंदिर में मौजूदा माता अन्नपूर्णा, माता कालका और सरस्वती माता की मूर्तियां ही स्थापित की जाएंगी। मंदिर की लंबाई 108 फीट और चौड़ाई 54 फीट है। मुख्य कलश की उंचाई 81 फीट रहेगी। पूरा मंदिर सफेद मकराना संगमरमर से बनाया जा रहा है। मंदिर के पचास स्तंभों पर करीब 300 चित्र उकेरे जा रहे हैं। नागर शैली में बन रहे मंदिर का कार्य ओड़िशा के कारीगर कर रहे हैं। अगले डेढ़ वर्ष में मंदिर का कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।


माता के हर स्वरूप के होंगे दर्शन

ट्रस्ट के श्याम सिंघल बताते है कि नवरात्र में माता के जिन नौ स्वरूपों का पूजन होता है उनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री है। साथ ही दस महाविद्या में दो कुल माने जाते हैं। काली कुल में मां काली, मां तारा, मां भुवनेश्वरी और श्रीकुल में मां बगलामुखी, मां कमला, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भैरवी, मां मातंगी और मां धूमावती शामिल है। इसके अलावा 64 योगिनी के दर्शन भी भक्तों को मंदिर परिसर में होंगे।


नवरात्र में श्रृंगार के लिए 110 लोगों ने करवाई बुकिंग

अन्नपूर्णा माता मंदिर में शारदीय नवरात्र के दौरान चार बार माता का श्रृंगार किया जाता है। इस बार नवरात्र आठ दिन होने से 32 बार श्रृंगार होगा जबकि 110 लोगों ने माता के लिए श्रृंगार बुकिंग करवाई है। इसमें शहर के अलावा अन्य शहर के भक्त भी शामिल है। इसके बाद भी बुकिंग आने का क्रम जारी है। इसके चलते श्रृंगार का सिलसिला चार नवंबर (दीपावली) तक चलेगा।


जहां हो रहा निर्माण वहां हुए 150 शतचंडी महायज्ञ

वर्तमान मंदिर का निर्माण आर्य और द्रविड़ स्थापत्य शैली के मिश्रण से महामंडलेश्वर प्रभानंद महाराज ने 1959 में किया था। यह मंदिर अपने हाथी गेट के लिए पहचाना जाता है। इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। नवीन मंदिर का निर्माण वर्तमान मंदिर से 50 फीट पीछे किया जा रहा है, जहां 150 से अधिक शतचंडी यज्ञ हो चुके हैं।

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