Top Story

Navratri 2021: पुलिस का एक सही निर्णय संवार सकता है किसी की जिंदगी



जबलपुर, नवरात्र मां के नव रूपों की आराधना का पर्व। देवी मां के विभिन्न रूप अपने आप में अलग—अलग संदेशों, प्रेरणाओं को समाहित किए हुए हैं। मां भगवती यानी शक्ति। ऐसी ही शक्ति के स्वरूप हमें अपने आसपास भी देखने मिलते हैं। जहां नारी अपनी क्षमताओं, बुद्धि, ज्ञान, कर्मठता के साथ कर्तव्यों का निर्वहन करती देखी जाती है। नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी का पूजन होता है। मां का यह स्वरूप निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करने वाला है।

सही, सटीक व त्वरित निर्णय कर पाने की क्षमता ने आज की स्त्री को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया है। ऐसा ही आदर्श है यातायात थाना घमापुर प्रभारी निरीक्षक पल्लवी पांडे। जिनके जीवन में कई ऐसे क्षण आए जब उन्होंने अपने त्वरित निर्णयों के आधार पर जीवन को सही दिशा दिखाई और आज सभी नारियों के लिए एक आदर्श बन गई हैं। नमो देव्यै महादेव्यै के अंतर्गत आइए जानते हैं निरीक्षक पल्लवी पांडे के संघर्ष की कहानी को।

पल्लवी बताती हैं कि उनके पिता अरुण कुमार पांडे होमगार्ड में बाबू के पद कार्यरत थे। मां नीरा पांडे गृहिणी थीं। दो बहनों और एक भाई के बीच मैं दूसरे नंबर पर थीं। पिता चाहते थे कि सभी बच्चे बेहतर से बेहतर शिक्षा प्राप्त करें लेकिन अपनी आर्थिक स्थि​ति के चलते उनके इस सपने के पूरा में होने में रुकावटें आने लगीं। तब उन्होंने हम बच्चों से ग्रेजुएशन के बाद कहा कि अब आगे की शिक्षा अपने दम पर प्राप्त कर लो। हम लोग भी समझते थे कि पिता ने हम बच्चों के लिए बहुत संघर्ष किया है इसलिए हम भी उनका हाथ बंटाना चाहते थे। यहां से जीवन में अपने विवेक से निर्णय लेने का समय शुरू हुआ।

ऐसा निर्णय लेना था जिससे हमारी पढाई न छूटे इसलिए मैंने ट्यूशन लेना और स्कूल में पढाना शुरू कर दिया। हमने जिस कालेज से पढाई की है वो घर से दूर था। तो आटो और रिक्शा के पैसे बचाने के चक्कर में चार—पांच किलोमीटर पैदल चल लेते थे। मैं बैंक की जाब में जाना चाहती थी लेकिन कई प्रयासों के बाद भी सफलता नहीं मिली। तब मां ने कहा कि अब तुम निर्णय ले लो क्या करना है। मैंने एमबीए के करने के दौरान ही एसआइ का फार्म भर दिया। त्वरित में लिया गया यह फैसला भी सही निकला। मेरा एसआइ में चयन हो गया।

पर इसी चयन प्रक्रिया के दौरान मां को कैंसर हो गया। उनकी स्वास्थ्य बिगड गया था। दीदी की शादी हो गई थी। ऐसे में ही मैने एसआइ की लिखित और ​िफजिकल दोनों की परीक्षाओं की तैयारी की। चयन होने के बाद ट्रेनिंग हुई और 2011 में देवास में पहली पोस्टिंग मिली। इसके बाद कई थानों में ट्रांसफर होता रहा। डेढ साल पहले जबलपुर आई हूं। इसी बीच मां भी नहीं रहीं। शादी हुई। एक छह साल की बेटी भी है। मेरे पति का बहुत सहयोग रहता है मेरे साथ।
पुलिस में आने बाद कई बार ऐसे निर्णय लेने पडते हैं जिसमें सभी का भला हो। पुलिस के जाब में रहकर आसानी से किसी की भी मदद कर सकते है। उदाहरण के लिए थाने में पति—पत्नी के झगडे के केस आते हैं। जिनकी एक बार यदि एफआइआर लिख दी तो सभी का जीवन संघर्षमय हो जाएगा। इसलिए कोशिश करते हैं कि उन्हें समझा दें। यह निर्णय भी तुरंत ही लेना होता है कि किस केस में आगे की प्रक्रिया कैसे करना है कि समस्या का हल हो सके।

यातायात में आने के बाद यह जिम्मेदारी और भी बढ गई है। कई बार लोग यातायात नियमों का पालन नहीं करते। बहाने बनाते हैं। तब गुस्सा भी आता है पर समझदारी का उपयोग करते हुए निर्णय लेते हैं। जिससे सामने वाले को सबक भी मिल सके। मैं भगवान में बहुत विश्वास करती हूं और कोशिश करती हूं कि सही निर्णय ले सकूं।

ईश्वर के आशीर्वाद से सभी निर्णय सही भी होते हैं। पुलिस की नौकरी की तो शर्त ही है कि अपने विवेक का पालन करते हुए स्थितियों को संभालना। जो कई बार कठिन भी होता है। मैं मानती हूं कि अच्छा करो तो अच्छा ही होता है। कोशिश रहती है कि सही निर्णय लेकर किसी की जिंदगी संवार सकें। क्योंकि किसी को समझाना उसके जेल जाने से तो अच्छा है ही।

https://ift.tt/3BzoVRB https://ift.tt/3lXpVZ7