सरोगेसी से हर कोई नहीं बन सकता माता-पिता, भारत में इससे जुड़े नियम समझ लीजिए
Surrogacy Laws In India : ऐक्टर प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) और उनके पति निक जोनस (Nick Jonas) ने हाल में ही ऐलान किया है कि वे सरोगेसी से पैरेंट्स बनने वाले हैं जिसके बाद सरोगेसी को लेकर चर्चा होने लगी है।
पिछले दिनों प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस ने ऐलान किया वे एक बच्चे के माता-पिता बनने वाले हैं। दोनों ने इंस्टाग्राम पर फैंस से ये खुशखबरी साझा की थी। दोनों ने लिखा था, 'हमें ये कन्फर्म करते हुए बहुत खुशी हो रही है कि हमने सरोगेट के जरिए बच्चे का स्वागत किया है।' प्रियंका चोपड़ा की कजिन मीरा चोपड़ा ने कन्फर्म किया था कि उनके बेटी हुई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस की बेटी डिलीवरी डेट से 12 हफ्ते पहले ही सरोगेसी के जरिए पैदा हुई। भारत सरकार ने 25 जनवरी को सरोगेसी (रेग्युलेशन) ऐक्ट 2021 (Surrogacy (Regulation) Act 2021) को नोटिफाई कर किया है। ऐक्ट का मकसद यह है कि भारत में कमर्शल सरोगेसी को रोका जा सके। यहां जानते हैं कि हमारे देश में सरोगेसी को लेकर किस तरह का कानून है।
क्या है सरोगेसी?
मेडिकल एक्सपर्ट और जानेमाने डॉक्टर अंशुमान कुमार बताते हैं कि सरोगेसी मेडिकल प्रोसेस है जिसके तहत वे कपल जिनकी संतान नहीं है और बच्चे की इच्छा रखते हैं, वे किराए पर कोख लेते हैं।
किराए पर कोख देने वाली महिला सरोगेट मदर कहलाती है।
संतान चाहनेवाले कपल के शुक्राणु और अंडाणु लेकर लैब में मेडिकल प्रोसेस से भ्रूण तैयार किया जाता है।
इसके बाद उसे मेडिकल प्रोसेस से ही सरोगेट की कोख में पहुंचा दिया जाता है।
बच्चा कपल का ही होता है लेकिन दूसरी महिला की कोख में पलता है।
9 महीने बाद जब बच्चा पैदा होता है तो कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक उस बच्चे को बॉयोलॉजिकल पैरेंट्स (जिनके शुक्राणु और अंडाणु से बच्चा हुआ है) को सौंप दिया जाता है।
कपल और सरोगेट मदर के बीच हुए कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर मेडिकल खर्च से लेकर सरोगेट मदर के बीमे आदि का खर्च कपल का होता है। वह महिला की देखरेख भी करते हैं। डॉक्टर अंशुमान कहते हैं कि हमारे देश में आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग की महिलाएं आसानी से मिलने की वजह से विदेश की तुलना में कम खर्च में सरोगेट मदर मिल जाती थी। इसलिए विदेशी और अमीर भारतीय अपनी संतान पैदा न होने पर इस प्रोसेस से बच्चे पा रहे थे। इस एवज में सरोगेट मदर को पैसे देते थे। लेकिन अब कानून के मुताबिक इस पर बैन है।
अब कमर्शल सरोगेसी पर है पाबंदी
दिल्ली हाई कोर्ट के वकील करण सिंह का कहना है कि सरोगेसी रेग्युलेशन ऐक्ट 2021 कमर्शल सरोगेसी को रोकता है। 25 दिसंबर 2021 को संसद ने बिल पास किया। 25 जनवरी 2022 को राष्ट्रपति ने इस ऐक्ट पर मुहर लगा दी। अब मौजूदा कानून के तहत परोपकार यानी मदद के लिए सरोगेसी की इजाजत दी गई है। सरोगेट मदर का इंश्योरेंस करवाना होगा और वह 36 महीने का होगा। साथ ही उसका मेडिकल खर्च कपल को उठाना होगा। लेकिन इसके अलावा सरोगेट मदर को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा। जिस क्लीनिक में जाएं वह भी रजिस्टर्ड होना जरूरी है। सरोगेसी के एवज में कमर्शल लेनदेन पर पाबंदी लग गई है।
कौन हो सकती है सरोगेट मदर?
हाई कोर्ट के वकील नवीन शर्मा का कहना है कि यह प्रावधान किया गया है कि कोई भी महिला सिर्फ एक बार ही सरोगेट मदर बन सकती है। महिला जो पहले से शादीशुदा हो और उसके बच्चे हों तभी वह सरोगेट मदर बन सकती है। वह कोई नशा न करती हो और मेडिकल तौर पर फिट हो। अगर कपल सरोगेट मदर का इंश्योरेंस न कराए और मेडिकल खर्च देने के नियम का उल्लंघन करे तो कपल को 10 साल कैद की सजा हो सकती है साथ ही 10 लाख रुपये तक जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
सरोगेसी से सभी नहीं बन सकते पैरंट्स
दिल्ली हाई कोर्ट के एडवोकेट राजीव कुमार मलिक का कहना है कि जो कपल सरोगेसी से बच्चा चाहता है उनका पहले से कोई बच्चा नहीं होना चाहिए। न खुद का और न गोद लिया हुआ। कपल में पुरुष की उम्र 26 साल से 55 साल के बीच और महिला की उम्र 23 से 50 साल के बीच होनी चाहिए। तलाकशुदा शख्स, लिव-इन में रहने वाले या होमो सेक्शुअल आदि को सरोगेसी की इजाजत नहीं है। सरोगेसी का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए यह कानून बनाया गया है।
मौजूदा कानून की खामियां
डॉक्टर अंशुमान कुमार बताते हैं कि सरोगेसी की प्रक्रिया के दौरान मेडिकल एक्सपर्ट यह तय कर सकता है कि जो भ्रूण तैयार हो रहा है वह लड़का होगा या लड़की।
अगर शुक्राणु से 23 प्लस एक्स क्रोमोजोम लिया जाए और अंडाणु से 23 प्लस एक्स क्रोमोजोम लिया जाए और क्रॉस कराया जाए तो 46 एक्स एक्स से बेटी होगी। वहीं अगर शुक्राणु से 23 प्लस वाई क्रोमोजोम लिया जाए और अंडाणु से 23 प्लस एक्स क्रोमोजोम लिया जाए तो इससे 46 एक्स वाई बनेगा और फिर बेटा होगा।
अब जिन्हें बेटा चाहिए उस कपल की इच्छा से उनके शुक्राणु से वाई क्रोमोजोम डाला जाए तो बेटा ही होगा और जिन्हें बेटी चाहिए उनके केस में शुक्राणु से एक्स क्रोमोजोम डाला जा सकता है तो बेटी ही होगी। ऐसे में कानून में कमी नहीं रहनी चाहिए। अगर लिंग जांच पर रोक है तो फिर सरोगेसी के दौरान कपल और मेडिकल एक्सपर्ट के बीच किसी भी तरह की सांठगांठ को भी खत्म करना होगा।
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