वेस्ट UP में जाटों ने BJP को दिए बंपर वोट, पिछले चुनाव में शाह की स्ट्रैटेजी फिर आएगी काम?
नई दिल्ली: 2014 के लोकसभा चुनाव हों या 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बीजेपी को भर-भरकर वोट मिले हैं। भगवा पार्टी को इस बात का एहसास भी है। यही कारण है कि वह यहां किसी भी तरह लोगों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है। खासतौर से जाट समुदाय की। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किला फतह करने के लिए जाट वोटरों का साथ जरूरी है। इस समुदाय को पश्चिमी यूपी में काफी प्रभावशाली माना जाता है। यह पलक झपकते चुनावी गुणा-गणित बदल सकता है। काफी कोशिशों के बाद बीजेपी इस वोट बैंक को अपने पाले में ला सकी है। इसके पीछे बीजेपी और पार्टी के चुनावी रणनीतिकार अमित शाह की पूरी स्ट्रैटेजी रही है। हालांकि, इस बार पश्चिमी यूपी की तस्वीर कुछ बदली-बदली है। जयंत चौधरी के साथ अखिलेश यादव के हाथ मिलाने के बाद इस तरह की अटकलें हैं कि जाटों का समर्थन इस गठबंधन को भी मिल सकता है। उत्तर प्रदेश में सात चरणों में मतदान होना है। पहले चरण में 10 फरवरी को 11 जिलों की 58 सीटों पर मतदान होगा। इसमें शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, बुलंदशहर जिले प्रमुख हैं। दूसरे चरण में 14 फरवरी को नौ जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। इसमें सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, बरेली, अमरोहा, पीलीभीत प्रमुख जिले हैं। पहले दोनों चरणों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में मतदान होगा। पिछले चुनावों में भाजपा ने इस इलाके में अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन, इस बार किसान आंदोलन की वजह से क्षेत्र के किसानों और जाट समुदाय में भाजपा के खिलाफ नाराजगी देखने को मिली है। भांप गई है बीजेपी? शायद बीजेपी को भी इस बात का पूरा एहसास है। यही कारण है कि चुनाव से पहले तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लिया गया। अब बची-खुची नाराजगी को दूर करने के लिए भी कोशिशें जारी हैं। इसका बीड़ा खुद गृह मंत्री अमित शाह ने उठाया है। बुधवार को उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेताओं से बातचीत की। इसका मकसद यहां पार्टी के लिए स्थितियों को और अनुकूल बनाना था। बैठक की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि इसमें जाट समुदाय के करीब 250 से अधिक प्रबुद्ध वर्ग के लोग और अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभुत्व रखने वाले नेता शामिल हुए। अमित शाह ने बैठक में इन सभी से भावुक अपील की। याद दिलाया कि कैसे उन्होंने मिलकर पार्टी को वोट दिया। हर कदम पर उन्हें हमेशा जाट समुदाय का पूरा साथ मिला। इनके अलावा भाजपा के उत्तर प्रदेश के प्रभारी व केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और बागपत से सांसद सत्यपाल सिंह ने भी बैठक में हिस्सा लिया। कैसे सफल साबित हुई बीजेपी की स्ट्रैटेजी? 2014 लोकसभा चुनाव में जाट समुदाय ने बीजेपी को जबर्दस्त समर्थन दिया था। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को वैसा ही सपोर्ट मिला। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां 143 में से 108 सीटें हासिल की थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यह सिलसिला कायम रहा। एक बार फिर बीजेपी को जाटों ने छप्पर फाड़ के वोट दिए। इसके चलते उसने 29 में से 21 सीटों पर जीत दर्ज की। पहले चरण की 73 सीटों पर बीजेपी को 2012 के 16% वोट की तुलना में 2017 में यहां 45% वोट मिले। वहीं, जाट नेता अजीत सिंह के नेतृत्व वाली आरएलडी का वोट शेयर 11% से घटकर 6% पर पहुंच गया। इस इलाके में अन्य दलों और निर्दलियों का वोट शेयर भी गिरा। इससे साफ पता चलता है कि जाट लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के समर्थन में खड़े रहे। इसी के चलते पूरी हवा बदल गई। बीजेपी ने इस वोट बैंक को धीरे-धीरे खड़ा किया है। वह नहीं चाहती कि एकदम से यह उसके हाथों से निकल जाए। यहां यह भी समझना होगा कि प्रदेश में जाटों की आबादी 3 से 4 फीसदी के बीच है। हालांकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ये करीब 17 फीसदी हैं। लोकसभा की एक दर्जन और विधानसभा की 120 सीटों पर जाट वोट बैंक असर डालता है। किस तरह के मुद्दे उठाती रही है बीजेपी? किसानों, जाटों और दलितों के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी अच्छी है। हर चुनाव में बीजेपी पर इस इलाके में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश के आरोप लगते रहे हैं। इस बार बीजेपी की ओर से 'पलायन' और ‘80 बनाम 20’ जैसे मुद्दों को उठाकर ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है। अमित शाह ने पिछले दिनों कैराना का दौरा कर इन मुद्दों को धार देने की भी कोशिश की।
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