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रूस-यूक्रेन पर न्‍यूट्रल स्‍टैंड... कहीं पश्चिमी देशों के साथ भारत के रिश्‍तों पर तो नहीं आएगी आंच?

India-EU Relations: यूक्रेन पर रूस के हमले (Russia Ukraine War) को करीब दो हफ्ते बीत चुके हैं। इस हमले में सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई है। 20 लाख से ज्‍यादा लोग पलायन करने को मजबूर हुए हैं। यह सिर्फ दो देशों के बीच जंग नहीं है। इसने दुनिया के तमाम मुल्‍कों की विदेश नीति की भी परीक्षा ली है। भारत (India Foreign Policy) भी उन देशों में शामिल है। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी सहित ज्‍यादातर देशों ने यूक्रेन पर हमले की खुलकर आलोचना की है। लेकिन, भारत इसमें शरीक नहीं हुआ है। इस मामले में उसने बीच का रास्‍ता अपनाया हुआ है। अब तक उसका स्‍टैंड न्‍यूट्रल रहा है। यह बात पश्चिमी देशों को अखरी भी है। वह तराजू के दोनों पलड़ों को संभालता दिख रहा है। ऐसे में एक सवाल उठने लगा है। वह यह है कि क्‍या पर न्‍यूट्रल स्‍टैंड (India's Neutral Stand) से पश्चिमी देशों के साथ भारत के रिश्‍तों पर आंच आएगी? दुनिया में अमेरिका के बाद रूस हथियारों का सबसे बड़ा एक्‍सपोर्टर है। एक अनुमान के मुताबिक, हथियारों की कुल बिक्री में उसकी हिस्‍सेदारी करीब 20 फीसदी है। हाल के सालों में रूस के हथियारों का सबसे बड़ा इंपोर्टर भारत रहा है। रूस के कुल हथियारों की बिक्री में भारत की हिस्‍सेदारी 23.3 फीसदी है। इस बात से ही समझा जा सकता है कि रूस पर भारत की निर्भरता कितनी ज्‍यादा है। इस बात को अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश भी बखूबी समझते हैं। ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस का हालिया बयान इसकी बानगी है। उन्‍होंने कहा था कि यूक्रेन संकट पर भारत का रुख रूस पर उसकी निर्भरता के कारण है। आगे की राह यह सुनिश्चित करना है कि भारत और ब्रिटेन के बीच आर्थिक के साथ रक्षा संबंध मजबूत हों। यूक्रेन पर हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्‍ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्‍की दोनों के साथ बात की। इस दौरान उन्‍होंने युद्ध को तत्‍काल रोकने की भी अपील की। हालांकि, अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर उसने रूस की किसी भी तरह की आलोचना से दूरी बनाई है। संयुक्‍त राष्‍ट्र में रूस की आलोचना वाले अब तक आए पांच प्रस्‍तावों में से किसी में भी उसने हिस्‍सा नहीं लिया। उसने बार-बार यही कहा है कि वह यूएन चार्टर के सिद्धांतों को लेकर प्रतिबद्ध है। वह अंतरराष्‍ट्रीय कानूनों के अनुसार, सभी देशों की संप्रुभता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्‍मान करता है। भारत ने अपने इस तटस्‍थ रुख से पश्चिमी देशों और रूस दोनों को साधकर रखा है। लेकिन, उस पर अपने रुख में सख्‍ती लाने का भी जबर्दस्‍त दबाव है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, यूरोपीय संघ के तमाम आला अधिकारी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ संपर्क में है। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन संकट को लेकर कई यूरोपीय नेताओं से बातचीत हुई। इनमें फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैनुअल मैक्रों, पोलैंड के राष्‍ट्रपति आंद्रजेज डूडा और यूरोपीय परिषद के अध्‍यक्ष चार्ल्‍स मिशेल शामिल हैं। मामले से जुड़े जानकार कहते हैं कि भारत के साथ काम कर रहे यूरोपीय अधिकारी भारत के स्‍टैंड से निराश हैं। हालांकि, वो उसकी पोजिशन को समझते हैं। ऐसे में भारत के साथ सब कुछ पहले की तरह चलेगा। इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं आने वाला है। उसे आगे बहुत फूंकफूंककर कदम बढ़ाने होंगे। यूक्रेन संकट पर किसी की तरफादारी न कर भारत ने अपने दोस्‍त रूस का भी भरोसा कामय रखा है। 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्‍जा किया था तब भी संयुक्‍त राष्‍ट्र में उसने अपना रुख न्‍यूट्रल रखा था। भारत को सबसे ज्‍यादा नजर चीन पर रखनी होगी। यूक्रेन संकट को लेकर उसका स्‍टैंड भारत के नजरिये से काफी अहम है। हाल के वर्षों में चीन की रूस के साथ करीबी बहुत बढ़ी है। इसे भारत को देखना होगा। चीन भारत के लिए खतरा है। ऐसे में भारत इस हद तक कभी नहीं जाएगा जिससे उसके हित ही खतरे में पड़ जाएं।


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