Top Story

एक साथ दो डिग्री, सबके लिए बस एक एंट्रेंस... एजुकेशन सेक्‍टर में बड़े बदलाव की आहट

सरकार, हायर एजुकेशन में एक बड़े बदलाव के लिए अपने सभी संबद्ध कॉलेजों को 2035 तक 'डिग्री प्रदान करने वाले बहु-विषयक स्वायत्त संस्थान' बनने की अनुमति देने की योजना बना रही है। प्रस्तावित दिशानिर्देशों के अनुसार, छात्र एक साथ दो संस्थानों से दो डिग्री हासिल कर सकता है। जिसमें 40 प्रतिशत क्रेडिट उनके विश्वविद्यालय या कॉलेज के बाहर से हो सकता है। कॉलेजों को क्लस्टर बनाने या यहां तक कि एक बड़े विश्वविद्यालय को बहु-विषयक डिग्री प्रदान करने की अनुमति दी जाएगी। प्रस्तावित नीति में यह संस्थागत सहयोग का भी प्रस्ताव है जिसके तहत एक अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स को अपना डिग्री कोर्स पूरा होने पर, मास्टर्स करने के लिए फिर से एंट्रेंस टेस्ट नहीं देना होगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 'उच्च शिक्षा संस्थानों को बहु-विषयक संस्थानों में बदलने के लिए दिशानिर्देश' का नया मसौदा शुक्रवार को जारी किया। अगले दो हफ्तों के लिए, अपनी समिति के दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने से पहले अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स से सुझाव मांग रहा है। जिनपर विचार करने के बाद यूजीसी अप्रैल-मई 2022 तक नियमों को अंतिम रूप देगा। मसौदे ने दुनिया भर में बहु-विषयक संस्थानों की स्थापना की संस्कृति पर जोर दिया और भारत में संबद्ध कॉलेजों, विश्वविद्यालयों की मौजूदा संरचना को बदलने के लिए कई उपायों की सिफारिश की। यूजीसी द्वारा जारी मसौदे में विशेष रूप से, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रस्तावित सुधारों में उच्च शिक्षा संस्थानों (HEI) को बहु-विषयक विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और समूहों और इंफॉर्मेशन सेंटर्स में बदलकर उच्च शिक्षा के विखंडन को खत्म करने की योजना है। यूजीसी के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ( chairman M Jagadesh Kumar) ने कहा कि विचार 2030 तक हर जिले में या उसके पास बड़े बहु-विषयक उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित करना है, जो एनईपी 2020 में की गई सबसे जरूरी सिफारिशों में से एक है। टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए यूजीसी चेयरमेन ने बताया कहा कि आज नौकरी देने के लिए उन्हीं लोगों को चुन रहे हैं जिनके पास कई तरह के स्किल्स हैं। हमारी भारतीय शिक्षा प्रणाली लंबे समय से बहुत सख्त अनुशासनात्मक सीमाओं के भीतर काम कर रही है और हम उन अनुशासनात्मक सीमाओं से बाहर निकलना चाहते हैं। यह विचार किसी भी छात्र का अलग-अलग विषय के लिए क्लस्टर या दूसरे कॉलेज, यूनिवर्सिटी जाने की सुविधा के लिए है। उन्होंने आगे कहा कि यूजीसी द्वारा ड्राफ्ट नीति में तीन प्रकार के बहु-विषयक संस्थानों को रखा गया है- रिसर्च इंटेसिव यूनिवर्सिटीज, टीचिंग इंटेसिव यूनिवर्सिटी और डिग्री देने वाले स्वायत्त कॉलेज। कुमार ने कहा, इनमें से एक अतिरिक्त विभाग स्थापित करना है, जो अब तक मौजूदा उच्च शिक्षण संस्थानों के मुख्य क्षेत्र नहीं रहे हैं। 'आईआईटी टेक्नोलॉजी और जेएनयू जैसी यूनिर्सिटी ह्यूमेनिटीज और सोशल साइंस पर केंद्रित हैं तो, क्या हम अतिरिक्त विभाग स्थापित कर सकते हैं ताकि छात्रों की बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान तक पहुंच हो? उदाहरण के लिए, IIT-दिल्ली सामाजिक विज्ञान, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों या राष्ट्रीय सुरक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में विभाग स्थापित कर सकता है ...क्योंकि इंजीनियरों को हमारे समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों के करीब लाना भी जरूरी है।' उन्होंने कहा, दूसरा प्रस्ताव है कि केंद्रित क्षेत्रों में काम करने वाले छोटे संस्थानों को एक ही छत्री के नीचे लाया जाए और उन्हें अपने मैनेजमेंट के साथ स्वायत्तता बनाए रखते हुए उन्हें बड़े विश्वविद्यालयों में बदला जाए। वहीं 'तीसरी योजना स्वायत्त कॉलेजों को एक क्लस्टर के रूप में लाने की है। उनका अपना निदेशक मंडल और अपनी अकादमिक परिषद होगी। क्लस्टर के भीतर के कॉलेजों के छात्र एक-दूसरे के कोर्स तक पहुंच सकते हैं और क्रेडिट ले सकते हैं। इस मॉडल में एक और बड़ी योजना 2035 तक सभी एफिलेटिड कॉलेजों को डिग्री देने वाले स्वायत्त संस्थान बनने की अनुमति देना है। यूजीसी चेयरमैन ने बताया कि “प्रसिद्ध स्वायत्त कॉलेज हैं। यहां पढ़ने वाले बहुत से लोग खुद को उन संस्थानों से पहचानते हैं, न कि उस विश्वविद्यालय से जो डिग्री दे रहे हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि 2035 तक सभी संबद्ध कॉलेज या तो डिग्री देने वाले स्वायत्त संस्थान बन जाएं या विश्वविद्यालय का हिस्सा बन जाएं ताकि संस्थान में अन्य बहु-विषयक अनुसंधान और शैक्षणिक कार्यक्रमों तक उनकी पहुंच हो सके। इस नीति में संस्थागत सहयोग का भी सुझाव है, मान लीजिए अगर IIT-दिल्ली और जेएनयू की अपनी आंतरिक ताकत है। तो इन दोनों संस्थानों के बीच सहयोग करके, एक छात्र जो आईआईटी में बीटेक कोर्स में एडमिशन लेता है, उसे बिना किसी एंट्रेंस एग्जाम और दूसरी प्रवेश प्रक्रिया के सहयोग के वह जेएनयू के मास्टर्स कोर्स में एडमिशन ले सकता है। इसके कई फायदे हैं- एक यह है कि छात्र को कई प्रवेश परीक्षाओं के दबाव से गुजरना नहीं पड़ेगा, क्योंकि छात्र जानता है कि एक बार वह आईआईटी-दिल्ली में स्नातक कार्यक्रम में शामिल हो गया है, अब अगर वह चाहे तो वह मास्टर कार्यक्रम में जा सकता है।


from https://ift.tt/M65yZeq https://ift.tt/cO1pTtR