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अटल, तेजस्वी, केजरीवाल को झटका दे चुके हैं एग्जिट पोल्स... भरोसेमंद नहीं है 'इतिहास'!

लखनऊः उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) खत्म होने के बाद कई एजेंसियों ने (Exit Polls 2022) जारी किए हैं। ज्यादातर एग्जिट पोल्स (UP Chunav ) में भारतीय जनता पार्टी (BJP Uttar Pradesh) को पूर्ण बहुमत से सरकार बनाते हुए दिखाया गया है। हालांकि, तमाम लोगों का मानना है कि एग्जिट पोल को ही नतीजा मानने से बचना चाहिए क्योंकि ये हर बार सही नहीं होते।एग्जिट पोल तैयार करने वाले लोगों का भी यह मानना है कि एग्जिट पोल्स हर बार सही या पूरी तरह से सटीक नहीं हो सकते। कई बार ऐसा होता है कि ये वास्तविक आंकड़ों के नजदीक होते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि वास्तविक नतीजे इसके ठीक उलट आते हैं। ऐसे में एग्जिट पोल से यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता कि किस पार्टी की सरकार बन रही है? आने वाले 10 मार्च को जब उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हो जाएंगे तब यह न सिर्फ चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों पर जनता का फैसला होगा बल्कि एग्जिट पोल बनाने वाले लोगों की जनता के मूड को पढ़ने की क्षमता की भी परीक्षा का परिणाम होगा। एग्जिट पोल के इतिहास को देखें तो ज्यादातर बार इसके आंकड़े वास्तविक नतीजों से बहुत दूर रहे हैं। सबसे 'करेक्ट' एग्जिट पोल अभी तक का सबसे चर्चित और 'करेक्ट' एग्जिट पोल साल 2014 के चुनावों का माना जाता है। तब लोकसभा चुनाव में तमाम एग्जिट पोल्स ने यह दावा किया था कि भारतीय जनता पार्टी अब तक की सबसे ज्यादा सीटों के साथ जीत दर्ज कर रही है। बताया गया था कि बीजेपी को 200 से लेकर 300 तक सीटें हासिल हो सकती हैं। उसमें यह भी कहा गया था कि कांग्रेस नीत यूपीए को सिर्फ 70 सीटें मिलेंगी। जब यह एग्जिट पोल सामने आए थे तो राजनीतिक विश्लेषकों ने इसका काफी मजाक उड़ाया था लेकिन जब नतीजे सामने आए तो हर कोई हैरान रह गया। वास्तविक नतीजों में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को 334 सीटें मिली थी। वहीं यूपीए सिर्फ 60 सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा को जहां 282 सीटें मिली थी, वहीं कांग्रेस को सिर्फ 44 सीटों पर जीत मिली थी। इससे पहले साल 2004 का एग्जिट पोल सबसे बड़े उलटफेर का उदाहरण बनकर सामने आया था। आत्मविश्वास से भरी अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली एनडीए ने तब जल्दी चुनाव कराने का फैसला कर लिया था। इसके पीछे कारण था कि ज्यादातर पब्लिक ऑपिनियन पोल्स सत्ता में बीजेपी की वापसी का दावा कर रहे थे और माना जा रहा था कि अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री ऑफिस में वापस लौटेंगे। जब एग्जिट पोल ने दिया झटका इस साल किसी भी एग्जिट पोल ने कांग्रेस को सत्ता में आने का मौका नहीं दिया था लेकिन जब चुनाव हो गए और उसके बाद नतीजे आए तो बीजेपी को तगड़ा झटका लगा। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सत्ता से बाहर हो गई थी। ज्यादा दूर न जाएं और साल 2017 के एग्जिट पोल की ही बात करें, तब भी कई सारी सर्वे एजेंसियों ने पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने का दावा किया था लेकिन जब नतीजे आए तब कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस स्पष्ट विजेता के तौर पर सामने आई। उत्तर प्रदेश में साल 2017 में किसी भी एग्जिट पोल ने भारतीय जनता पार्टी को 300 सीटों का आंकड़ा पार करने का अनुमान नहीं लगाया था लेकिन भाजपा ने 300 से ज्यादा सीटों पर दर्ज की । यहां हम हाल के कुछ प्रमुख चुनावों के एग्जिट पोल्स की भविष्यवाणियों पर नजर डालेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि एग्जिट पोल के नतीजे कितने सटीक होते हैं? 2014 की मोदी लहर 'अबकी बार मोदी सरकार' के नारे वाली साल 2014 की 'मोदी लहर' को कौन भूल सकता है? उस समय लोकसभा चुनावों के बाद कई एग्जिट पोल्स ने भारतीय जनता पार्टी के बढ़त बनाने की भविष्यवाणी की थी लेकिन वे मतदाताओं का सही मूड भांपने में बहुत ज्यादा कामयाब नहीं रहे थे। साल 2014 में हेडलाइंस टुडे-सिसेरो पोल ने एनडीए को 272 सीटों पर जीत मिलते दिखाया था। वहीं टाइम्स नाउ-ओआरजी पोल ने बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को 257 सीटों के साथ जीत के करीब दिखाया था। CNN-IBN- CSDS के सर्वे ने एनडीए को 276 सीटें दी थीं। एनडीए को 300 से ज्यादा सीटों के आंकड़े पार करने की भविष्यवाणी सिर्फ एक एजेंसी ने की थी। News 24-टुडे चाणक्य एनडीए को 340 सीटें दे रहा था। तब इस पोल पर हर किसी ने हैरानी जताई थी लेकिन जब वास्तविक नतीजे आए तब यह साफ हो गया कि बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए ने 300 सीटों का आंकड़ा पार कर लिया है। साल 2017 का पंजाब इलेक्शन एग्जिट पोल कराने वाली कई एजेंसियां इस चुनाव को भूल जाना चाहती होंगी। साल 2017 के पंजाब चुनाव के बाद सी वोटर पोल ने अपने एग्जिट पोल में आम आदमी पार्टी को 59 से 67 सीटों पर जीतते हुए दिखाया था। वहीं न्यूज़ एक्स-एमआरसी और टुडे चाणक्य के पोल ने बताया था कि कांग्रेस और आप के बीच कड़ी टक्कर होगी लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए तब कांग्रेस ने 117 में से 77 सीटों पर जीत दर्ज कर ली। वहीं आम आदमी पार्टी को सिर्फ 20 सीटें मिलीं। साल 2017 का उत्तर प्रदेश चुनावः बीजेपी लहर से अनजान पोल्स साल 2014 के लोकसभा चुनावों की तरह 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी तो की गई थी लेकिन उसे कितनी सीटें मिलेंगी इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल था? टाइम्स नाउ-वीएमआर पोल में भाजपा को 190 से 210 सीटों पर आगे दिखाया था। इसके अलावा अन्य एग्जिट पोल यूपी में हंग असेंबली की संभावना जता रहे थे। एबीपी-लोकनीति ने बीजेपी को 174 सीटें दी थीं जबकि सी वोटर ने सिर्फ 161 सीटों पर बीजेपी को जीतते हुए दिखाया था। जब चुनाव के वास्तविक नतीजे सामने आए तो भारतीय जनता पार्टी ने 300 सीटों का आंकड़ा पार कर लिया था। जाहिर है कि एग्जिट पोल उत्तर प्रदेश में बीजेपी की लहर का अंदाजा लगाने में विफल रहे थे। साल 2019 का लोकसभा चुनाव साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ज्यादातर एग्जिट पोल सही साबित हुए थे। अधिकांश ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की स्पष्ट जीत की भविष्यवाणी की थी। टाइम्स नाउ, इंडिया टुडे और अन्य कई सारे पोल्स में एनडीए को 300 सीटों के आंकड़े को पार करते हुए दिखाया गया था। बहुत कम ऐसे एग्जिट पोल्स थे जिसमें बीजेपी को 300 सीटों से या बहुमत से कम पर सिमटते हुए दिखाया गया था। साल 2004 का लोकसभा चुनाव साल 2004 के लोकसभा चुनाव में एग्जिट पोल ने बीजेपी के जीत की भविष्यवाणी की थी। बीजेपी अपने 'इंडिया शाइनिंग' कैंपेन के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में जीत के बाद अटल बिहारी वाजपेई की सरकार उत्साह से भरी थी और चुनाव में फिर से जीत की उम्मीद में संसद को जल्दी भंग कर दिया था। एग्जिट पोल्स ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को 240 से 250 से ज्यादा सीटों पर जीत की भविष्यवाणी कर दी थी। तब चर्चा सिर्फ इस बात पर होती थी कि क्या एनडीए बहुमत के 272 सीटों की सीमा को पार कर लेगी या नहीं? लेकिन जब परिणाम आए तो संख्या पूरी तरह से उलट थी। अनुमान था कि कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 170 से 205 सीटें मिलेंगी लेकिन जब नतीजे आए तो यूपीए 216 सीटों पर विजयी रही। बीजेपी 240 से 250 सीटों पर जीत की भविष्यवाणी के मुकाबले 187 सीटों पर सिमट गई। साल 2020 में बिहार चुनाव की पहेली साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में कई एग्जिट पोल्स ने राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन को जीतते हुए दिखाया था लेकिन भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनियन के गठबंधन ने उन्हें गलत साबित कर दिया। दो पोल एजेंसियों- एक्सिस माय इंडिया और टुडे चाणक्य ने राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए साफ जीत की भविष्यवाणी की थी जबकि कई अन्य पोल एजेंसियों ने महागठबंधन और एनडीए के बीच कड़ी टक्कर का अंदाजा लगाया था लेकिन जब नतीजे आए तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में फिर से एनडीए की सरकार बनी। बंगाल चुनाव में धराशायी हो गए पोल्स पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और दावा किया था कि वह इस पूर्वी राज्य में सरकार बनाने वाली है। चुनाव के बाद जब एग्जिट पोल्स आए तो उसमें भी बीजेपी के 100 से ज्यादा सीटें जीतने की संभावना जताई गई थी। कई एग्जिट पोल्स ने तो बीजेपी को टीएमसी से ज्यादा सीटें दे दी थीं। इंडिया टीवी ने दावा किया था कि बीजेपी को 192 सीटें मिलेंगी जबकि टीएमसी 88 सीटों पर सिमट जाएगी। इसके अलावा रिपब्लिक-सीएनएक्स के सर्वे में भी टीएमसी के 133 के मुकाबले बीजेपी को 143 सीटें दी जा रही थीं। तकरीबन सभी एग्जिट पोल्स ने बीजेपी के 100 पार जाने का दावा किया था लेकिन जब नतीजे आए तो भगवा पार्टी 77 सीटों पर सिमट गई और प्रचंड बहुमत के साथ एक बार फिर ममता बनर्जी ने राज्य में सरकार बनाई। विदेशों में भी गलत होते हैं एग्जिट पोल हालांकि, एग्जिट पोल्स के जरिए जनता के मूड को भांपने में विफल होने की घटना केवल भारत में ही नहीं होती बल्कि विदेशों में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप के मुकाबले में कई एग्जिट पोल जनता का मूड पढ़ने में विफल रहे थे। ज्यादातर पोल्स क्लिंटन की जीत का दावा कर रहे थे जबकि जीत डोनाल्ड ट्रंप की हुई थी और वह अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे। क्यों गलत हो सकते हैं एग्जिट पोल? एग्जिट पोल आमतौर पर मतदाताओं के वोट डालने के बाद उनसे बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। इन्हें ओपिनियन पोल से ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है। हालांकि एग्जिट पोल्स के लिए सैंपल साइज अक्सर अपर्याप्त हो सकते हैं और इस वजह से किसी विशेष विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में जनता के मूड को सही तरह से भांपने में गलती हो सकती है। एक अन्य वजह हैं शर्मीले या चुप्पा मतदाता, जो अपनी पसंद के बारे में साफतौर पर या खुले तौर पर कुछ भी कहने से बचते हैं।


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