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बस 10 आदतें जो बना देंगी बच्चों की जिंदगी, जानें किन बातों का रखना है ध्यान



आदतें एक दिन में नहीं बनतीं और जब एक बार ऐसी आदतें बन जाएं तो आसानी से जातीं भी नहीं। खासकर बचपन की आदतें तो 55 के बाद भी बनी रहती हैं। ...तो फिर बचपन से ही अगर अच्छी और जरूरी आदतें डाल दी जाएं तो ये उम्र भर साथ देती रहेंगी। देश की जानी-मानी न्यूट्री डाइट एक्सपर्ट डॉ. शिखा शर्मा से ऐसी ही 10 आदतों के बारे में जाना जो बचपन में लग जाएं तो बाद में ताउम्र तन-मन ठीक रखती है

कहते हैं जिद अगर अच्छी चीजों की हो तो उसे कायम रखनी चाहिए। और ऐसी जिद होनी भी चाहिए। यही बात आदतों पर भी लागू होती है। आदतें भी अगर अच्छी हों तो जरूर लगानी चाहिए। अगर कोई बच्चा अपने शरीर का आदर करता है, सफाई पर ध्यान देता है, बचपन से ही शाम या रात में हल्का खाने की आदत अपना लेता है तो मान लें कि लाइफस्टाइल की बीमारियां जैसे- शुगर, बीपी, स्ट्रेस आदि उससे दूर रहेंगी। वहीं बच्चों को बेहतर बनाने के लिए प्रोत्साहित करने से पहले यह जरूरी है कि हम खुद उदाहरण के रूप में सामने आएं। सच तो यह है कि बच्चे कॉपी मशीन होते हैं। पैरंट्स जो करते हैं, बच्चे भी वही सीखते हैं। अगर घर में पैरंट्स को बात-बात पर चिल्लाने की आदत है तो बच्चे भी आपस में चिल्लाना सीख जाते हैं। इसलिए पहले खुद को पूरा न सही, फिर भी एक हद तक तो उदाहरण के रूप में सामने पेश कर सकते हैं। मसलन, सामान को सही तरीके से रखना, दूसरों से सही तरीके व्यवहार करना आदि।

1. हेल्थ को नंबर एक प्रयॉरिटी बनाना

अपने शरीर से लगाव होना बहुत जरूरी है। किसी भी तरह तो हर कोई जी सकता है, लेकिन खुद पर ध्यान देकर जीने से बात अलग ही होती है। बचपन में अगर खुद के शरीर पर ध्यान देने की आदत लगा दें तो यह ताउम्र काम आती है।

2. सही वक्त पर जागना और सोना

रात को जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने की आदत: 'अर्ली टु बेड एंड अर्ली टु राइज़' की लाइन हर कोई सुनता है, पर जो अमल करता है, वही फिट भी रहता है। बच्चों को रात में जल्दी सुलाना और सुबह जल्दी उठाना जरूरी है। चूंकि 3 साल के बाद उन्हें स्कूल जाना भी जरूरी है, इसलिए बच्चों को रात में 8 से 9 बजे के बीच सुला देना चाहिए।

उम्र के हिसाब से लेने दें इतनी नींद

1 से 2 साल 11 से 15 घंटे
3 से 5 साल 10 से 14 घंटे
6 से 13 साल 9 से 12 घंटे
14 से 17 साल 8 से 11 घंटे

3. सही समय पर और सही तरीके से खाना

एक तय समय पर, मौसम और उम्र के हिसाब से खाना जरूरी है। कभी भी कुछ भी खा लेना सही नहीं। खाना खाने के 40 से 45 मिनट बाद पानी पीने की आदत डालें। इससे उम्र बढ़ने पर गैस आदि की परेशानी कम होती है। पानी पीते समय इस बात को सुनिश्चित करना कि पानी स्वच्छ हो। इसी तरह आजकल बच्चे सोफे को तो छोड़िए बेड पर ही खाना खाने लगते हैं। इस तरह की आदतें सही नहीं हैं। समतल जमीन पर न खिला सकें तो डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाने की आदत लगवा ही दें। लंच या डिनर करने से पहले अगर हम 5 से 10 सेकंड के लिए ईश्वर को याद कर लें तो हर निगेटिविटी से मुक्त होकर खाना खा पाते हैं।
खाते समय टीवी और मोबाइल से दूरी रखें: टीवी या मोबाइल देखकर खाने से अन्न शरीर को नहीं लगता। चूंकि ध्यान कहीं और रहता है तो हमारे दिमाग को पेट भर जाने के बारे में पता ही नहीं चलता। इससे बच्चे ज्यादा खाते चले जाते हैं। मोटापे की शुरुआत यहीं से होने लगती है। कई बच्चे ऐसे भी होते हैं जो दिखने में दुबले होते हैं, पर खाना खूब खाते हैं। फिर भी उनका वजन ही नहीं बढ़ता। इसकी वजह में भी ध्यान से न खाना हो सकता है।
खाने को स्पर्श करें: चम्मच से खाने से नुकसान सिर्फ यह है कि हम खाने को महसूस नहीं कर पाते। खाने की छुअन शरीर और हमारे मन को सुकून पहुंचाती है। इसलिए अगर मुमकिन हो तो बच्चे को हाथ से खाने की आदत लगवाएं। ऐसा भी नहीं कि चम्मच से खाना बिलकुल ही बंद करा दें।

4. सलाद और फल की आदत
हर दिन के खाने में सलाद और फल की आदत को शामिल करें। लंच से पहले 1 फल खा लेना अच्छा होता है। । दरअसल, आजकल के ज्यादातर बच्चे और बड़ों को भी जंक फूड, पैक्ड फूड खाने की आदत होती है। इन्हें खाने की वजह से मोटापा, शुगर, बीपी जैसी परेशानियां दस्तक देने लगती हैं। अगर बचपन से ही हर दिन एक फल और पर्याप्त सलाद खाने की आदत डालें तो इसका फायदा आगे बहुत मिलता है। शरीर में मिनरल्स की कमी नहीं होती, विटामिन्स का स्तर भी सामान्य बना रहता है। फ्रिज में मौसमी फल या सलाद (गाजर, खीरा, चुकंदर) रखें। वैसे, फ्रिज में जमा करने से अच्छा है कि इन्हें ताजे खाना। फल या सलाद में इस बात का जरूर ध्यान रखें कि वे मौसमी हों, कोल्ड स्टोरेज वाले न हों।

5. घर में चिप्स, कोल्ड ड्रिंक्स नहीं
वैसे तो चिप्स, कुरकुरे, नमकीन खाना ही गलत है। फिर भी कई बार बच्चों की जिद के आगे पैरंट्स को झुकना पड़ता है। कई परिवार में बच्चों को मंचिंग आदि के लिए ऐसे ही पैक्ड या फिर नूडल्स जैसे जंक फूड खिलाने का चलन है। ऐसे फूड को वे किचन की अलमारी में जमा करके रखते हैं। हकीकत यह है कि महीने में एक या दो बार खिला देना और कोल्ड ड्रिंक्स पिला देना चल सकता है, लेकिन अगर इसे घर में स्टोर कर लिया जाए तो यह सभी के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है। ऐसे में डिनर के बाद भी टीवी देखते हुए कई बच्चे चिप्स खाते हैं और कोल्ड ड्रिंक्स पीते हैं। टीवी पर भी ऐसे विज्ञापन आते रहते हैं जब मैच देखते हुए चिप्स चबाने और कोल्ड ड्रिंक्स पिलाने को महिमामंडित किया जाता है। जब ऐसी डाइट हर दूसरे या तीसरे दिन होने लगे तो परेशानी होगी ही। इसलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि महीने में एक या दो बार अगर पैक्ड फूड आइटम्स खिलाने की मजबूरी हो या कोल्ड ड्रिंक्स पिलाने की, तो उसे उसी दिन कम मात्रा में खरीदें और खत्म करा दें। कभी स्टोर करने की कोशिश न करें। हां, अगर स्टोर करना हो तो मंचिंग के लिए फल, सलाद, ड्रई फ्रूट्स, सीड्स आदि को करें ताकि भूख लगने पर यही ऑप्शन ही उपलब्ध होंगे। एक बार बचपन में आदत लग गई तो बड़े होने पर भी आसानी से जाती नहीं, आपने भी जरूर सुना होगा।

6. रात का खाना हल्का

इस आदत को बचपन से डालना बहुत जरूरी है। आजकल जो ओवर-इटिंग की परेशानी है, इससे कई तरह की लाइफस्टाइल की समस्याएं पैदा हो रही हैं। ऐसी तमाम तरह की समस्याओं में रात में हल्का और सूर्यास्त तक खा लेने से बहुत फर्क पड़ता है। अगर सूर्यास्त तक न खिला पाएं तो 7 से 8 बजे तक जरूर खिला दें। इससे वजन काबू में रहता है और भी कई फायदे हैं। यहां हल्का से मतलब है कम कैलरी वाली चीजें, कम मात्रा में और सुपाच्य खाना खिलाएं।
इसके अलावा बच्चों को पानी और पानी के साथ तैयार किया हुआ हेल्दी ड्रिंक पिलाने की आदत डालें। मैं हर दिन सुबह अदरक, काली मिर्च, तुलसी, सौंफ, इलायची को मिलाकर ड्रिंक तैयार करती हूं। मैं एक से डेढ़ गिलास पीती हूं। बच्चों के लिए आधा गिलास काफी है। इसे हर दिन पीने की कोशिश करती हूं। मार्केट के सूप, ड्रिंक आदि से यह बहुत बढ़िया है। इससे शरीर की इम्यूनिटी भी सही रहती है और स्किन पर ग्लो भी रहता है। ऐसे ड्रिंक पीने की आदत बच्चों को जरूर डलवाएं।

7. साफ-सुथरे रहना, चीजें सहेज कर रखना

ऐसी कई बीमारियां हैं जो सिर्फ गंदगी की वजह से होती हैं। इसमें शरीर की सफाई न रखना, साफ कपड़े न पहनना, कपड़ों को सहेज कर और समेट कर न रखना, नाखूनों की सफाई न करना, बाल साफ न रखना जैसी तमाम बातें शामिल हैं। साफ-सफाई की आदतों को ज़िंदगी में शामिल करने से फायदा ताउम्र मिलता रहता है। इसका दूसरा फायदा यह भी है कि बड़े होने पर शादशुदा ज़िंदगी भी सुखमय रहता है। बालों का ध्यान रखने से बाल जल्दी जाते नहीं। स्किन साफ रखने से स्किन से जुड़ी बीमारी होने की आशंका न के बराबर होती है। इसका दायरा इतना ही नहीं है। जो बच्चे आज चीजों को सहेजना सीखेंगे, साफ-सुथरा रहेगे तो वे कोशिश करेंगे कि जब उनका परिवार होगा। उनके बच्चे होंगे तो वे भी इन आदतों को अपनी ज़िंदगी में शामिल करें ताकि उनके बच्चे भी सेहतमंद और सलीकेदार बनें।

8. प्रार्थना करना और समस्याओं के समाधान की आदत

जब कोई शख्स बहुत परेशान होता है तो वह अपनों से दिल की बात करता है। कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं जब वह अपनों से भी कह नहीं पाता। ऐसे में उस सर्वशक्तिशाली ईश्वर, खुदा जो भी कहें, उस पर भरोसा करने से, कि अगर हमने किसी का बुरा नहीं किया है तो मेरे साथ भी बुरा नहीं होगा, यह एक सहारे का काम करता है। यह परिस्थितियों से लड़ने में और आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करता है। इसमें ध्यान करना बहुत अहम है। बच्चों को हर दिन 5 से 10 मिनट के लिए मेडिटेशन करने के लिए प्रेरित करें। जिस धर्म में जिस तरह की पद्धति हो, विधान हो वैसा ही फॉलो करने से फायदा होता है। मसलन, सुबह या शाम की आरती में बच्चों को शामिल करने से भी फायदा होगा।
समस्याओं के समाधान की आदत डालना का मतलब है कि बच्चों को कुछ छूट भी मिलनी चाहिए। उन्हें इतनी छूट दें कि वे अपनी क्लास, अपनी छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान खुद कर सकें। जिस भी बच्चे में इस तरह की आदत आ जाती है, ऐसा देखा जाता है कि वह बुरी से बुरी परिस्थिति से भी निकलने में माहिर होता है। ऐसे बच्चों को खुद पर विश्वास होता है। हां, यह मुमकिन है कि वह समाधान खोजने में घर में किसी सामान का नुकसान कर दे। पर यह भी सच है कि समाधान खोजने की प्रवृत्ति उसे भीड़ से अलग बना देती है। वहीं बच्चों को जिम्मेदारी जरूर देनी चाहिए। जिम्मेदारी कैसी देनी है यह उनके पैरंट्स बेहतर समझ सकते हैं। अगर गाड़ी, घर या अलमारी की 2-2 चाबी हों तो उनमें से एक बच्चे को रखने दें और कहें कि जब मैं मांगू तो दे देना। कोशिश यह भी करें कि छुपकर यह देख लें कि वह उसे कहां रख रहा है। इसी तरह मार्केट जा रहे हों तो कुछ पैसे (100-200 रुपये) रखने को दें और कहें कि सामान खरीदते समय मांगूंगा। इस तरह से उसके अंदर कुछ जिम्मेदारी का अहसास होगा। चीजों को सहेज कर रखने की आदत विकसित होगी।

9. आउटडोर गेम्स ज्यादा

5-7 साल के बच्चों से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह हर दिन टहलें और एक्सरसाइज करें। लेकिन उन्हें बाहर खेलने के लिए भेजकर आउटडोर गेम्स खेलने की आदत जरूर लगवा सकते हैं। वैसे भी बच्चों का सबसे प्यारा शगल खेलना ही होता है। बच्चे तो तब तक खेलते हैं जब तक थक कर सो न जाएं। इसलिए बाहर खेलने की आदत जरूर लगवाएं। अगर खेलने की सुविधा न हो तो कम से कम साइक्लिंग के लिए प्रोत्साहित करें। इस आदत से बच्चों को फिट रहने में मदद मिलेगी। साथ ही बच्चे फिजकली ऐक्टिव भी रहेंगे। कई बच्चे क्रिकेट, स्विमिंग जैसे गेम्स में अच्छा भी कर जाते हैं। ये उनका पैशन हो जाता है। बच्चों को इनडोर गेम्स के साथ आउटडोर गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि फिजिकली ऐक्टिव रहें। शाम को जब बच्चा आउटडोर गेम्स खेलकर घर वापस आए और पसीने से तर-बतर हो तो खुश हो जाएं कि बच्चा सही ट्रैक पर है। लड़कियों को आउटडोर गेम्स खेलने में दिक्कत हो तो वे घर में ही डांसिंग कर सकती हैं।

10. पढ़ाई के अलावा कोई पैशन भी

पढ़ना तो सभी को है। किसी को हायर एजुकेशन लेनी होती है तो कोई कम पढ़ाई करके भी दुनिया को अपना दीवाना बना जाता है। इनमें सचिन, धोनी जैसे नाम शामिल हैं। इन नामों को दुनिया ने इसलिए जाना क्योंकि ये धुन के पक्के यानी उस खेल के साथ बचपन से ही पैशन से जुड़े थे। इसलिए अगर किसी बच्चे को किसी खेल के प्रति पैशन हो तो वह आगे काफी काम कर जाता है। कुछ बच्चे इनडोर गेम्स को भी पैशन बनाते हैं। मसलन, चेस आदि।


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