यूँ ही कभी थककर एक बार, जीवन की उलझनों से दूर, जीना चाहती थी स्वच्छंद, एकबार। चल पड़ी थामें प्रियतम का हाथ, जीवन से मिलने छोड़ घरबार। पहुँच ...Read More
फिर एकबार
Reviewed by मध्यप्रदेश टाइम्स
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September 29, 2019
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न राधा न मीरा, मैं हूँ रुक्मणी, प्रेम न भक्ति, मर्यादा के नाम पर हूँ छली, प्रेमियों की प्यारी राधा, भक्ति का उपमान है मीरा सार्थक उसका जीवन ...Read More
रुक्मणी की व्यथा
Reviewed by मध्यप्रदेश टाइम्स
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May 29, 2019
Rating: 5